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छत्रपति शिवजी महाराज द मोटिवेशन गुरु- Motivational true Story

bol dost by bol dost
February 6, 2024
in हिंदी कहानियां
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छत्रपति शिवजी महाराज द मोटिवेशन गुरु

छत्रपति शिवजी महाराज द मोटिवेशन गुरु

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 इस आर्टिकल में छत्रपति शिवजी महाराज की प्रेरणानीति (छत्रपति शिवजी महाराज द मोटिवेशन गुरु)किस तरह की थी
इसके बारे में दो कहानी देखंगे। शिवाजी महाराज से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?

छत्रपति शिवजी महाराज की प्रेरणानीति (छत्रपति शिवजी महाराज द मोटिवेशन गुरु)

छत्रपति शिवजी महाराज जन्म तिथि -19 फरवरी 1630
जन्म स्थान - शिवनेरी किला पुणे जिले में जुन्नार शहर के पास।
छत्रपति शिवाजी महाराज की सही जन्म तिथि इतिहासकारों के बीच असहमति का विषय है।
महाराष्ट्र सरकार ने छत्रपति शिवाजी महाराज के जन्म (शिव जयंती) के उपलक्ष्य में 19 फरवरी को मान्य किया है।छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम देवी शिवई नाम पर रखा गया था। एक पौराणिक कथा के अनुसार, जीजाबाई ने शिवनेरी किले में शिवई देवी से उन्हें एक पराक्रमी पुत्र देने के लिए प्रार्थना की, इसलिए उनका का नाम 'शिवाजी' रखा गया।

पिता शाहजीराज भोंसले एक मराठा सेनापति थे जिन्होंने दख्खन सल्तनत की सेवा की थी।

छत्रपति शिवाजी महाराज उनकी माता का नाम जीजाबाई था।

शिवाजी महाराज से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?

छत्रपति शिवजी महाराज की प्रेरणानीति अद्भुत थी उनकी प्रेरणानीति के कारण लोग स्वराज्य के लिए मरने को तैयार हो जाते थे।
लोग कहते थे, “महाराज, मुझे स्वराज्य के लिए बलिदान देना का मौका दीजिए”।

यह नहीं भूलना चाहिए कि अपने स्वराज्य के लिए मौत की भीख मांगने वाले ये लाखों मावला सैनिक महाराज की प्रेरणा नीति से पैदा हुए थे।

 

छत्रपति शिवजी महाराज द मोटिवेशन गुरु

 

प्रेरणा के संदर्भ में हम एक उदाहरण के रूप में  सत्य घटना पर आधारित एक कहानी देखंगे
रायगढ़ किले का एक नियम था की सूरज ढलते ही रायगढ़ का मुख्य द्वार बंद कर दिया जाय। इस समय में कोई भी किले के बाहर या अंदर नहीं जा सकता था ।किले का मुख्य द्वार सुबह होने पर खोला जाता था।

ऐसे में एक दिन एक गवलानी दूध बाटने के लिए रायगढ़ में आती है और रायगढ़ को देखनेमें दंग हो जाती है और तब सूरज ढल जाता है और रायगढ़ का मुख्य द्वार बंद किया जाता है।अब रायगढ़ का दरवाजा किसी भी हालत में तब तक नहीं खुलता जब तक कि सुबह न हो जाए।

उस गवलानी को छोटा बच्चा था। वो रायगढ़ के निचे अपने घर में था उसका अभी पालन पोषण हो रहा था, गवलानी को अब उस लड़के के लिए हर हाल में घर जाना जरूरी था।
स्वशासन के नियमों को तोड़ते हुए और मुख्य द्वार न खोलेते हुवे वो अपने छोटे बच्चे के लिए गढ़ उतरना चाहती थी। जो भी ये स्वशासन का नियम तोड़ता तो उसके लिए मौत की सजा थी। इस सजा के बारे में गवलानी को अच्छी तरह से मालूम था।
इतना मालूम होने पर भी एक माँ अपने बेटे के ममता के लिए रायगढ़ के एक चट्टान से नीचे उतरने का फैसला करती है।

चट्टान से निचे उतरना मतलब किले से गिरकर मौत को दावत देने जैसा था। उसने चांदनी रात में अपना रास्ता चुना और वह किले से नीचे उतर गई । किले से निचे उतरते वक्त उसने बहुत मुश्किलों का सामना किया और अपने घर पहुंच गई।

इधर, दूसरे दिन पहरेदारों और किलेदारों ने सभी की तलाशी ली तो उनका पलायन शुरू हो गया क्योकि वो औरत रायगढ़ पर नहीं मिल रही थी। किले का द्वार बंद होने पर गवलन कहाँ गयी ?
तब पता करने के बाद पता चला ही गवलन रात में किले के कड से उतरकर अपने घर चली गई है और सुरक्षित है।

गुप्तचरों ने यह समाचार छत्रपति शिवजी महाराज को सुनाया। महाराज ने उस गवलनी को बुलाया। दरबार भर गया और कहा कि आप जैसी बहादुर बहनें मेरे स्वराज में हैं इसलिए यह स्वराज अजेय है। अपने प्राणों की परवाह न करते हुए अँधेरी रात में अपने बच्चे के लिए किले से नीचे उतरी और बड़ी हिम्मत दिखाई । अब हम आपका नाम उस चट्टान के नाम पर रखेंगे जिससे आप नीचे उतरी थी । आपको कोई सजा नहीं मिलेंगी आपकी वजहसे रायगढ़ और सुरक्षित हो गया।

छत्रपति शिवजी महाराज ने उन्हें कपड़े , चूड़ियाँ और पैसे देकर सम्मानित किया और तुरंत हिरोजी इंदलकर को आदेश दिया की यह महिला जिस स्थान से नीचे उतरती उसे देखकर वह स्थान के चारों ओर एक बुरुज (टॉवर) बनाया जाय और रायगढ़ को अधिक अभेद्य बनाया जाय।
और इस नए बुरुज को नाम उस औरत के नाम से दिया गया
उस का नाम था ‘हीरकणी’
बुरुज का नाम ‘हीरकणी’ बुरुज रखा गया ।

कोई और राजा होता तो गवलन औरत को मृत्युदंड देता मगर छत्रपति शिवजी महाराज ने कहा ‘हीरकणी’की वजहसे रायगढ़ और सुरक्षित हो गया”
इस वीर पुरुष की वीरता और हीरकणी का साहस को दुनिया हमेशा याद रखेंगी, जब तक रायगढ़ दुनिया के नक्शे पर है।

इस विश्व के पीठ पर ऐसी कोनसी कंपनी, संगठन है जिसने अपने लोगों का नाम किसी यूनिट या प्लांट को दिया हो । एक कंपनी के पास केवल मालिक का नाम होता है। चाहे उस कम्पनीकी कितनी भी शाखाएँ खोल ली जाएँ। और यहाँ, हालाँकि, महाराज ने राजधानी के गढ़ के एक बुरुज को ‘हीरकणी’ नाम देकर सभी महिला शक्ति को प्रेरित किया, और उसकी बहादुरी की हमेशा प्रशंसा की। इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं है कि छत्रपति शिवजी महाराज विश्व के मोटिवेशन गुरु हैं।

 

छत्रपति शिवजी महाराज द मोटिवेशन गुरु

छत्रपति शिवाजी महाराज न केवल मावलों को बल्कि रैयतों को भी विभिन्न अवसरों पर विभिन्न माध्यमों से प्रेरक और चुनौतीपूर्ण कार्य करने का आवाहन करते थे।

प्रेरणा के विभिन्न उदाहरण में इस तरह का दूसरा मोटिवेशन का उदाहरण देखते हैं।

छत्रपति शिवजी महाराज ने रायगढ़ किले को अपनी राजधानी के रूप में चुना और राजधानी के अनुरूप किले का निर्माण शुरू किया। तमाम किलेबंदी आदि बन जाने के बाद महाराजा ने किले की अभेद्यता सुनिश्चित करने के लिए एक बड़ी योजना की घोषणा की। यह सुनिश्चित करने के लिए कि राजधानी का किला एक अजेय और सुरक्षित तरीके से बनाया गया है और वो हमेशा सुरक्षित रहेगा
महाराजा ने जगह-जगह भीड़ को इकठा की और घोषणा की

“जो कोई भी किले के मुख्य द्वार के अलावा किसी अन्य मार्ग से किले पर चढ़ेगा, उसे बहुत बड़ा पुरस्कार दिया जाएगा”।

छत्रपति शिवजी महाराज ने अपने हाथों से पुरस्कार की घोषणा की जो कोई मुख्य द्वार के अलावा किसी अन्य मार्ग से किले पर चढ़ेगा उसको 100 होण नकद और एक सोने की अंगूठी और एक बढ़िया घोडा पुरस्कार के रूप में दिया जायगा साथ में सरकारी नौकरी भी मिलेंगी ।

प्रदर्शन जितना बड़ा था तो पुरस्कार भी बड़ा था।
महाराज को कल्पना थी कि रायगढ़ पर चढ़ाई करना इतना आसान नहीं इस कल्पना से वो रायगढ़ कितना सुरक्षित है ये देखना चाहते थे मगर, जो कोई भी इस चैलेंज को स्वीकारता वो खुद मृत्यु को आमंत्रण देने जैसा था ।

स्वराज्य में हजारों मावल थे जो अपने सिर को हथेलियों पर रखकर लड़ते थे और किले पर चढ़ते थे । इस चुनौती का स्वीकार करने वाला केवल एक मावला ही यह पराक्रम करेगा और किले की अभेद्यता को भी मापा जा सकता था यह कल्पना छत्रपति शिवजी महाराज ने की थी ।

एक तरह से महाराज इसी घटना से किले की परीक्षा और मावलों और रैयतों की परीक्षा लेना चाहते थे। और महाराजा के इन दोनों लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक दलित युवक ने बहादुरी दिखाई ।एक युवक ने महराज का चैलेंज स्वीकार किया जो मदारी का खेल खेलता था।

  

 

वो अपने पुरे परिवार के साथ रायगढ़ किले के पास आ गया उसने पुरे रायगढ़ का निरिक्षण किया और एक आसान जगहसे किले पर चढने का निच्छय किया । यह योजना सरकारी थी इसीलिए महाराज स्वयं रायगढ़ में रुककर इस वीर युवक के साहस को देखने वाले थे और उसे जो भी मदत लगे वो महाराज ने उस युवक को दी।

किले के सैनिक बड़ी-बड़ी रस्सियों और जालों को लेकर उस युवक के सहायता के लिया खड़े हो गए।

इस बहादुर युवक ने रायगढ़ पर चढ़ने के लिए अपनी जानलेवा यात्रा शुरू की और महाराजा ने उसे किले के नीचे और किले पर घंटों ढोल पीटने की आज्ञा दी । महाराजा इस अवसर पर न केवल प्रसन्न थे, तो उन वीरों को अपने स्वराज में प्रोत्साहित करने में महाराजा की सदैव भूमिका थी। महाराज ने उस युवक के हिम्मत बढ़ाने और हिम्मत रखने के लिए प्रोत्साहित करने की व्यवस्था की।

एक कठिन यात्रा को शुरू करना आसान होता है लेकिन समाप्त करना बहुत कठिन होता है।
जैसे ही यह युवक जमीन से हजारों फीट की ऊंचाई पर चढ़ने लगा, अगर कहीं भी उसका हाथ खो जाता, अगर वह अपना पैर खो देता, तो यह युवक तुरंत मर जाता ।

हथेली पर सिर रखकर रायगढ़ पर चढ़ेने वाले इस वीर युवक को देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग रायगढ़ में जमा हो गए। किले के आसपास के क्षेत्र में चील, सांप और कई जहरीले सांपों और बिच्छुओं के हमलों का सामना करने के बाद, यह बहादुर युवक एक कठिन रास्ते से रायगढ़ पर आखिरकार चढ़ गया।

महाराज ने स्वयं आगे बढ़कर उस वीर युवक के साहस की प्रशंसा की और उसे अपने गले लगा लिया । एक अछूत समुदाय के युवक को महाराज ने गले लगाया यह देख कई लोग दुखी हुवे ।

ओह, लेकिन महाराज जाति भेद देखकर भेदभाव नहीं कर रहे थे।

 

महाराज लोगों के प्रेरणास्रोत थे लेकिन जब राजा स्वयं किसी को गले लगाते हैं तो उस व्यक्ति को महाराज 33 करोड़ देवताओं से भी बड़ा लगता है तो कोई आश्चर्य नहीं। महाराज को लोग भगवान से भी बढ़कर मानते थे, आज भी उन्हें उनके कार्यों के कारण भगवान से भी बढ़कर माना जाता है।

महाराज ने सर्व प्रथम उस युवक के खान -पान की व्यवस्था की। युवक जख्मी हुवा था तो उसके दवा की भी व्यवस्था की।
एक योद्धा जिस तरह से युद्ध में जखमी होता है उस तरह वो युवक जखमी हुवा था ।
उसके हाथ-पैर खून से लथपथ थे। लेकिन अब ये उसकी सारी मेहनत का फल होने वाला था। अगले दिन महाराजा ने रायगढ़ में एक दरबार आयोजित किया और सभी मान्य लोगों के सामने बहादुर युवक का सम्मान किया।
तब महाराज भावुक होके बोले की

“जब तक मेरे स्वराज में ऐसे बेलग किले पर चढ़ने वाले लोग हैं, तब तक मेरे लिए दुनिया के किसी भी किले को फतह करना मुश्किल  है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि रायगढ़ जैसे बेलग किले पर चढ़ाई करने वाले वीर दुनिया के किसी भी किले को फतह कर लेंगे। यह युवक उनकी गवाही है जो मेरे विश्वास को सार्थक बनाता है”। महाराजा ने युवक को स्वराज्य के शिलदार के रूप में काम पर रखा और उसे उसका इनाम दिया
100 हौन नकद, एक सोने का सिक्का और एक बढ़िया घोड़ा।

अब क्या आप जानते हैं कि इतनी बड़ी उपलब्धि के लिए इस छोटे से दिखने वाले इनाम की कीमत क्या है? आइए इसे जानते है । देखिए 100 हौन का मतलब कितना होता है 100 हौन मतलब उस समय 4 रुपये और एक रूपये में उस समय दो तोला सोना ख़रीदा जा सकता था आज के हिसाब से यह कीमत सोने के भाव से तुलना की जाय तो होगी-

दो करोड़ रूपये
अलग से सोने का सिक्का वो बारह तोले का था उसकी कीमत अलग, साथ में घोडा और सरकारी नौकरी

मुझे लगता है कि अपनी प्रजा को इतना बड़ा पुरस्कार देने वाला कोई भी प्रबंधक, मालिक, राजा दुनिया की पीठ पर पैदा नहीं हुआ है और यह नहीं कहा जा सकता है कि वह अगले 5000 वर्षों में पैदा होगा। महाराजा की इस प्रेरक योजना के कारण बहुत ही कम समय में अनेक सिद्ध लोग महाराजा के पास एकत्रित हो गए। और महाराज दुनिया के सबसे बड़े प्रेरक( मोटिवेशन) गुरु के रूप में प्रसिद्ध हुए।
आज छत्रपति शिवजी महाराज की इस निति पर अपने देश और
विदेश में रिसर्च कर रहे है।
शिवजी महराज थे मोटिवेशन गुरु
दोस्तों आपको छत्रपति शिवजी महराज की यह मोटिवेशन स्टोरी कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताना।

Thanks 

 

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