विपश्यना कहानी :तेल की बोतल दोस्तों स्वागत है आपका Boldost.com पर आज हम इस आर्टिकल में विपश्यना साधना में सिखाई जाने वाली एक कहानी देखेंगे कहानी के पहले हम ये जानते है की विपश्यना क्या है?
विपश्यना कहानी :विपश्यना क्या है?
दोस्तों विपश्यना यह साधना भारत की अति प्राचीन आध्यात्मिक विद्या है। भगवान बुद्ध ने करीब 2500 साल पहले फिर से विपश्यना साधना खोजी थी।
विपश्यना का अर्थ है जो वस्तु सचमुच जैसी है,उसे उसी प्रकार जान लेना है। यानी हमारे मन को इस वर्तमान के समय में एकाग्र करना।आत्म शुद्धि के लिए ऋषि पुरातन कल से इस साधना का उपयोग करते थे।
मन को एकाग्र करने के लिए नैसर्गिक श्वास के निरक्षण से इस साधना की शुरवात होती है।
अपने मन की गहराइयों में जाकर आत्म निरक्षण करना और उससे खुद के शरीर का निरिक्षण करना यही विपश्यना है।
अंतर्मन की गहराइयों में जाकर आत्म निरिक्षण करके आत्म शुद्धि की यह साधना है ।
इस साधना के लिए सजगता आवश्यक होती है। शरीर के चित्तधारा का निरिक्षण करते वक्त मन को अनित्य भाव की समज देने के लिए सजगता की जरूरत होती है।
दोस्तों विपश्यना साधना किसी धर्म या सप्रदाय से जुडी नहीं है यह एक सार्वजनिक विद्या है।
अपने जीवन काल में संबोधि प्राप्त करने के बाद भगवान बुद्ध 45 वर्ष तक लोगों को यह विद्या सिखाई। यह विद्या इसका सार है।
कष्टों से पूर्ण मुक्ति का अनुभव करने वाले उनके अर्हत भिक्षुओं ने लोक कल्याण के हेतु पूरे भारत में विपश्यना का प्रचार किया।
कुछ शिष्यों ने भारत के बाहर के देशों में इस विज्ञान का प्रचार किया। कुछ पड़ोसी देशों ने इस साधना को अपने शुद्ध रूप में बनाए रखा।
कुछ समय बाद यह विज्ञान भारत से समय अनुसार लुप्त हो गया , जो भारत में पूरी तरह से खो गया उस विज्ञान को पड़ोसी ब्रह्मदेश में संभाल रखा । ब्रह्मदेश में इस अभ्यास के लिए स्वयं को समर्पित करने वाले आचार्यों और गुरु-शिष्य परंपरा के कारण यह साधना अपने शुद्धतम रूप में जीवित रही है। इस परंपरा को प्रसिद्ध आचार्य सयाजी उबा खिन इन्होने इस विद्या का जतन किया
उनोने इस विद्या को श्री सत्यनारायणजी गोयनकाजी को सिखाया
आचार्य सयाजी उबा खिन इन्होने 1969 में श्री सत्यनारायणजी गोयनका को आचार्य का पद सौंपा।
उसके बाद कल्याणमित्र श्री सत्यनारायण गोयनका जीने इस विद्या को पुरे भारत देश में फैलाया
उनके प्रयासों से गृहस्थों के साथ-साथ साधु-संन्यासी, साधु-संतों आदि को भारत में विपश्यना साधना का लाभ मिलने लगा है। भारत के साथ यह साधन अन्य 80 देशो में सिखाई जाने लगी।
विपश्यना असल में क्या है: –
यह मन को शुद्ध करने की एक विधि है जिससे साधक शांति और संतुलन के साथ जीवन के उतार-चढ़ाव का सामना कर सकता है।
यह साधना जीवन जीने की कला है जीवन जीने की कला ही साधक को एक स्वस्थ समाज बनाने में मदत करती है।
विपश्यना साधना का सर्वोच्च आध्यात्मिक लक्ष्य विकारों से पूर्ण मुक्ति है।
इसका उद्देश्य केवल शारीरिक व्याधियों को मिटाना नहीं है , लेकिन मन की पवित्रता से कई मानसिक विकार स्वत: ही दूर हो जाते हैं। यह जीवन के कष्टों से मुक्ति की साधना है।
विपश्यना कैसे सीखी जा सकती है ?
विपश्यना सिखने के लिए आपको विपश्यना शिबिर में भाग लेना होगा।
यह शिबिर दस दिन का होता है। इस दस दिन में साधक को मौन व्रत का पालन करना होता है। साधक दस दिन के शिबिर में अन्य साधक से बात नहीं कर सकते इससे साधक को अंतर्मुखी होने के लिए मदत मिलती है ।दॄढ प्रयास के साथ दस दिन यह साधना करनी होती है
विपश्यना शिबिर में भाग लेने के लिए पहले आवेदन करना होतो है यह आवेदन ऑनलाइन नजदीकी विपश्यना आश्रम के लिए आप कर सकते है। विपश्यना का शिबिर सब लोगो के लिए खुला है ।
जो सचमुच ईनामदारी के साथ इस साधना को सीखना चाहता है ऐसे ही व्यक्ति को आवेदन करना चाहिए क्योकि यहा आवेदन ज्यादा आते है और आवेदन स्वीकृति की लिए दो या तीन महीने का वेटिंग समय होता है।
यह साधना आसान नहीं है। यहा बड़ी गंभीरता पूर्वक अभ्यास करना पड़ता है। इस दस दिन की शिबिर में शरीर की प्रज्ञा जाग सकती है। दस दिन का अवधि इस साधना के लिए कम माना जाता है।इस साधना को सही तरह सीखनेके लिए 45 दिन का समय सही समय माना जाता है मगर हर कोई अपने बिजी जीवन में इतना समय नहीं दे सकता।
इस लिए इस शिबिर का समय घटा के 10 दिन किया गया है। इस शिबिर में साधक को एक अच्छा अनुभव मिलता है जो साधक नियमावली का पालन करता है उसे लाभ मिलता है। इस सधना में प्रवेश निशुल्क होता है।
दस दिन साधना सिखने के बाद साधक इस अपने घर में खुद कर सकता है। बेहतर लाभ पाने के लिए साधक को सुबह एक घंटा और रात को एक घंटा करने की सलाह दी जाती है।
विपश्यना नियमावली –
दोस्तों विपश्यना करने के लिए कुछ नियमो का पालन करना जरुरी होता है इस नियम को शील पालन भी कहते है
विपश्यना करने के लिए पांच सिद्धांत का पालन करना जरुरी होता है
1. कोई भी हिंसा न करना
2 .चोरी न करना
3. जूठ न बोलना
4.ब्रह्म चर्य व्रत का पालन करना 5.किसी भी चीज की नशा न करना

विपश्यना क्या नहीं है:-
विपश्यना कर्मकांड नहीं है।
विपश्यना अंधविश्वास पर आधारित नहीं है।
यह ध्यान बौद्धिक मनोरंजन के लिए नहीं है।
यह छुट्टी मनाने या सामाजिक आदान-प्रदान के लिए नहीं है।
यह दैनिक जीवन के तनाव से बचना की साधना नहीं है।
विपश्यना क्यों आवश्यक है :-
अनादि कल से मनुष्य के जीवन में सुख और दुःख का खेल चलता आ रहा है। सुख आता है तो हम आनंद से जीते है और दुःख आता है तो विचलित हो जाते है । सुख और दुःख के ऊपर मन की एक समान अवस्था होती है जो सुख और दुख आने पर वो अनित्य है ऐसा मानकर केवल भोक्ता भाव से जीवन चलाती है।
राग मत करो , द्वेष मत करो यह हम बचपन से सुनते आ रहे है मगर जीवन में समान भाव की अवस्था नहीं ला पाए
इसी समत्व भाव को सिख ने लिए विपश्यना आवश्यक है।
यह एक विज्ञानं है जो हमारे साँस से शुरू होता है साँस को जानकर हम समत्व भाव ला सकते है।
साँस को जानकर शरीर में होनी वाली अच्छी- बुरी सवेंदना को जानकर का प्रज्ञा विकसित की जाती है।
विपश्यना में अंतर्मन को समत्व भाव के लिए प्रशिक्षित किया जाता है ऐसी प्रशिक्षण के लिए विपश्यना आवश्यक है जो जीवन जीने की कला सिखाती है।
