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Home रोचक जानकारी

मनुष्य जीवन का अंतिम लक्ष्य क्या है ? What is the Ultimate Goal of Human life?

bol dost by bol dost
May 6, 2024
in रोचक जानकारी
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What is the ultimate goal of human life?

What is the ultimate goal of human life?

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 इस आर्टिकल मे हम मनुष्य जीवन का अंतिम लक्ष्य क्या है इस के बारे मे जानकारी  लेंगे। मनुष्य जीवन एक यात्रा है, जो जन्म से लेकर मृत्यु तक चलती है। इस यात्रा में मनुष्य को अनेक सुख-दुःख, सफलता-असफलता का सामना करना पड़ता है। लेकिन, मनुष्य जीवन का अंतिम लक्ष्य क्या है?(What is the ultimate goal of human life?)

मनुष्य जीवन का अंतिम लक्ष्य क्या है? (What is the Ultimate Goal of Human life?)

इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमें पहले यह समझना होगा कि मनुष्य जीवन का स्वरूप क्या है। मनुष्य जीवन एक भौतिक शरीर के साथ-साथ एक आध्यात्मिक चेतना का भी स्वरूप है। भौतिक शरीर के साथ-साथ मनुष्य की आध्यात्मिक चेतना भी इस जीवन में विकास करती है। इस विकास का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है।

मोक्ष का अर्थ है, जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति। मोक्ष प्राप्ति के बाद मनुष्य की आत्मा परमात्मा के साथ एक हो जाती है। विभिन्न धर्मों में इस लक्ष्य को अलग-अलग नाम दिए गए हैं, जैसे कि मोक्ष, निर्वाण, परम ज्ञान आदि। लेकिन इन सभी शब्दों का अर्थ एक ही है, जीवन के दुखों और कष्टों से मुक्ति। मोक्ष एक आध्यात्मिक स्थिति है जिसे विभिन्न धर्मों में अलग-अलग तरीकों से परिभाषित किया गया है।

 

मनुष्य जीवन का अंतिम लक्ष्य क्या है
मनुष्य जीवन का अंतिम लक्ष्य क्या है

विभिन्न धर्म में मोक्ष की परिभाषा

  • हिंदू धर्म में मोक्ष को जीवन का परम लक्ष्य माना जाता है। हिंदू धर्म के अनुसार, आत्मा अमर है और यह जन्म-मृत्यु के चक्र में फंसी हुई है। मोक्ष की प्राप्ति के साथ, आत्मा इस चक्र से मुक्त हो जाती है और परम आनंद या ब्रह्म में विलीन हो जाती है। हिंदू धर्म में मोक्ष की प्राप्ति के कई मार्ग बताए गए हैं। इनमें कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग और राजयोग शामिल हैं। कर्मयोग का अर्थ है कर्मों को निष्काम भाव से करना।
  • भक्तियोग का अर्थ है ईश्वर की भक्ति करना। ज्ञानयोग का अर्थ है ज्ञान के माध्यम से मोक्ष प्राप्त करना। राजयोग का अर्थ है ध्यान और योग के माध्यम से मोक्ष प्राप्त करना। बौद्ध धर्म में मोक्ष को निर्वाण के रूप में जाना जाता है। निर्वाण एक ऐसी अवस्था है जिसमें दुख, तृष्णा और अज्ञानता का अंत हो जाता है।
  • बौद्ध धर्म में निर्वाण की प्राप्ति के लिए कई मार्ग बताए गए हैं। इनमें आर्य अष्टांग मार्ग, ध्यान और प्रज्ञा शामिल हैं। आर्य अष्टांग मार्ग का अर्थ है आठ-भागीय मार्ग, जो सही दृष्टि, सही संकल्प, सही भाषण, सही कर्म, सही आजीविका, सही प्रयास, सही जागरूकता और सही समाधि से मिलकर बना है। ध्यान का अर्थ है मन को एकाग्र करना। प्रज्ञा का अर्थ है सत्य का ज्ञान प्राप्त करना।

 

मनुष्य जीवन का अंतिम लक्ष्य क्या है
मनुष्य जीवन का अंतिम लक्ष्य क्या है

जैन धर्म में मोक्ष को कैवलज्ञान के रूप में जाना जाता है। कैवलज्ञान एक ऐसी अवस्था है जिसमें आत्मा पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लेती है। जैन धर्म के अनुसार, कैवलज्ञान की प्राप्ति के साथ, आत्मा पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाती है और परम आनंद प्राप्त करती है। जैन धर्म में कैवलज्ञान की प्राप्ति के लिए कई मार्ग बताए गए हैं।

इनमें शील, ज्ञान और समाधि शामिल हैं। शील का अर्थ है पापों से बचना और पुण्यों का पालन करना। ज्ञान का अर्थ है सत्य का ज्ञान प्राप्त करना। समाधि का अर्थ है मन को एकाग्र करना। सिख धर्म की मुक्ति की अवधारणा ‘गुरुमुखी’ अन्य भारतीय धर्मों के समान है। सिख धर्म में मोक्ष को ‘सचखंड’ या ‘परम धाम’ के रूप में भी जाना जाता है। सचखंड एक ऐसी अवस्था है जिसमें आत्मा परमात्मा में विलीन हो जाती है।

गुरु नानक देव ने बताया है कि मुक्ति पाने के लिए हमें प्रेम, करुणा और सेवा करना चाहिए।

भले ही विभिन्न धर्मों में मोक्ष की अवधारणा अलग-अलग है। भिन्न-भिन्न धर्मों में मोक्ष की परिभाषा और प्राप्ति के मार्ग अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन सभी धर्मों में मोक्ष को एक आध्यात्मिक स्थिति के रूप में माना जाता है जिसमें व्यक्ति सभी प्रकार के दुखों और पीड़ाओं से मुक्त हो जाता है।

मोक्ष प्राप्त कर लेने वाला व्यक्ति पुनः जन्म नहीं लेता है, बल्कि वह परमात्मा के साथ मिल जाता है। मोक्ष प्राप्ति के लिए मनुष्य को अपने जीवन में अनेक कठिनाइयों और बाधाओं का सामना करना पड़ता है। उसे सांसारिक मोह-माया को त्यागना पड़ता है, और अपने मन को परमात्मा में लीन करना पड़ता है।

 

भगवत गीता में मोक्ष के बारे में विस्तार से बताया है

  • हिंदू धर्मग्रंथों में चार पुरुषार्थों का उल्लेख है, धर्म (धार्मिकता) सदाचारपूर्ण जीवन जीना, अर्थ (समृद्धि) भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति, काम (आनंद) यानी भोग-विला, और मोक्ष (मुक्ति) चारों पुरुषार्थों को महत्वपूर्ण बताया गया है, लेकिन मोक्ष को जीवन का सर्वोच्च आदर्श माना गया है। मोक्ष प्राप्ति के लिए मनुष्य को इन चारों पुरुषार्थों का समन्वय करना चाहिए।
  • धर्म के बिना मोक्ष प्राप्ति संभव नहीं है। अर्थ के बिना धर्म का पालन करना कठिन है। काम के बिना मनुष्य का जीवन अधूरा है।

भगवत गीता में मोक्ष यानी मुक्ति की के बारे में विस्तार से बताया गया है। मुक्ति का अर्थ भिक्षुक का जीवन जीना नहीं है। इसका तात्पर्य एक सार्थक और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीना है। भगवद गीता कर्म को बंद करने की वकालत नहीं करती है। इसके बजाय, मनुष्य को अपने सभी सांसारिक कर्तव्यों को उत्साहपूर्वक करने की सलाह दी गई है, लेकिन कार्यों या उनके परिणामों के प्रति किसी भी लगाव के बिना।

ऐसा कहा गया है कि बुद्धिमान पुरुष अपने कर्मों के फल का त्याग करके स्वयं को बार-बार जन्म के बंधन से मुक्त कर लेते हैं। इस प्रकार, वे उस आनंदमय स्थिति को प्राप्त कर लेते हैं जो किसी भी दुःख से परे है (श्लोक 2.51)। आसक्ति रहित होकर अपने कर्तव्य का पालन करने से मनुष्य परमगति को प्राप्त होता है (श्लोक 3.19)।

मुक्ति पाने का सबसे आसान और सरल उपाय है भक्ति यानी ईश्वर का प्रेम और विश्वास। भगवान श्रीकृष्ण ने आश्वासन दिया है कि जो लोग उनको (परमेश्वर) को अपने सभी कर्म समर्पित करते हैं, और उनका ध्यान करते हुए हमेशा एकनिष्ठ भक्ति के साथ उनकी पूजा करते हैं, निश्चित रूप से उनमें निवास करते हैं। ऐसे भक्तों को शीघ्र ही मृत्यु-सागर से मुक्ति मिल जाती है (श्लोक 12.6 से 12.8 तक)।

मुक्ति का अर्थ सामाजिक दायित्वों का परित्याग नहीं है। श्लोक 12.4 में इस बात पर जोर दिया गया है कि मनुष्य को सभी प्राणियों के कल्याण में लगे रहना चाहिए।

जिन लोगों ने पूर्णता प्राप्त कर ली है, उन्हें अपने निर्धारित कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करते रहना चाहिए, ताकि आम जनता के अनुसरण के लिए एक उदाहरण स्थापित किया जा सके (श्लोक 3.20)। इस प्रकार गीता के विभिन्न श्लोकों में मुक्ति के बारे में विस्तार से बताया है।

 

मोक्ष की प्राप्ति के लिए क्या करना चाहिए

  • मोक्ष प्राप्ति के लिए हमेशा सत्य बोले, दूसरों की मदद करें, और ईश्वर की भक्ति करें। सत्य बोलने और सत्य का पालन करने से हमारे मन में निर्मलता आती है। हम दूसरों के साथ ईमानदार और निष्पक्ष व्यवहार करते हैं। इससे हमारे कर्म शुद्ध होते हैं और हमें मोक्ष प्राप्ति में मदद मिलती है।
  • धर्म के मार्ग पर चलने से हम अपने जीवन को एक सही दिशा दे सकते हैं। हम अच्छे कर्म करते हैं और बुरे कर्मों से बचते हैं। इससे हमारे कर्म शुद्ध होते हैं। दूसरों की मदद करने से हमारे मन में प्रेम और करुणा का भाव बढ़ता है। हम दूसरों के दुखों को दूर करने का प्रयास करते हैं। इससे हमारे कर्म शुद्ध होते हैं।
  • परमात्मा की भक्ति में लीन रहने से हमारे मन में शांति और सुकून का अनुभव होता है। हम परमात्मा के प्रति समर्पित होते हैं और उनके मार्ग पर चलते हैं। इससे हमारे कर्म शुद्ध होते हैं और हमें मोक्ष प्राप्ति में मदद मिलती है।
  • समापन  :

मोक्ष प्राप्ति एक कठिन साधना है, लेकिन यह असंभव नहीं है। मोक्ष प्राप्ति के बाद मनुष्य को सभी प्रकार के दुःखों से मुक्ति मिल जाती है और वह परम शांति प्राप्त करता है। जो मनुष्य अपने जीवन में परमात्मा के प्रति सच्ची भक्ति और समर्पण भाव रखता है, उसे अवश्य ही मोक्ष प्राप्त होता है।

काम, क्रोध, लोभ, चिंता, भय आदि से मुक्त है, आध्यात्मिक ज्ञान वाला व्यक्ति मानव जीवन के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करता है, धन्यवाद।

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