आज हम इस आर्टिकल मे एक किताब की बुक समरी पढ़ेंगे उस किताब का नाम है – मैं मन हूँ : हिंदी बुक समरी: इस किताब के लेखक है दीप त्रिवेदी। लेखक दीप त्रिवेदी ने अपने इस किताब मे मन की गेहराई के बारे मे प्रकाश डाला है।-कुछ भी हासिल करने की मास्टर चावी मास्टर चावी -लेखक दीप त्रिवेदी
मैं मन हूँ : हिंदी बुक समरी:
लेखक परिचय:
लेखक दीप त्रिवेदी एक प्रसिद्ध लेखक, वक्ता और स्पिरिच्युअल सायको डायनामिक्स के पायनियर है । लाइफ का कोई aspect नही है जिसे उन्होने छुआ न हो।(Main Mann hoon Hindi Book Summary)
लेखक दीप त्रिवेदी के नाम पर सर्वाधिक कोटेशन लिखने का रेकॉर्ड है ।
भगवत गीता पर सर्वाधिक लेक्चर देणे का रेकॉर्ड उनके नाम पर है। उन्होने 58 दिनो मे गीता पर 168 घंटे 28 मिनिटं और पचास सेकंड तक लंबी चर्चा की है।वे अपने लेक्चर मे सरल भाषा का उपयोग करते है और यही बात लेखक दीप त्रिवेदी को इस शेत्र का पायनियर बनाती है। उनके नाम पर अष्टवक्र गीता और ताऊ- ते- चिंग पर भी सर्वाधिक लेक्चर देणे का रेकॉर्ड है।
मैं मन हूँ : हिंदी बुक समरी:-कुछ भी हासिल (achieved) करने की मास्टर चावी।
इस किताब में हमे निचे दिए गए पॉइंट के बारे में जानकारी प्राप्त होगी।
मन -मेरा परिचच
मन- मेरा अस्तित्व
मन-मेरे उपद्रव
मन-मेरी संरचना
मन-मेरी शक्तियों के केंद्र
मन-मेरे से अन्य संबंध
मन- मुझे दबाने के दुष्परिणाम
दुःख और चिंता दूर करने के उपाय
वर्तमान
व्यक्तित्व
हिंनता
लगाव
अपेक्षा
सफलता के सार सूत्र
इंटेलिजन्स
क्रिएटिव्हिटी
कॉन्सन्ट्रेशन
महत्वकांक्षा घटाए
आत्मविश्वास संतोष सार
Chapter One- MIND-मेरा परिचय
लेखक दीप त्रिवेदी इस chapter हमे मन का परिचय देते है। वो कहते है की, ये ब्रम्हांड जितना पुराना है उतना मन का अस्तित्व पुराना है। मन के कारण ही मनुष्य अस्तित्व मे है। मनुष्य के जीवन मे आने वाली सफलता,सुख और दुःख इनका सबका कारण उसका मन ही है और इसी मन के बारे मे हमे कुछ पता ही नही।इस किताब मे लेखक हमे मन के बारे मे जानकारी देते है। उन्होंने जो सिद्धांत हमे बताए है उसके लिए बहुत सारी स्टोरी किताब मे लिखी है। स्टोरी से वो सिद्धांत अच्छी तरह से ग्रसपिंग होता है।
लेखक इस किताब मे कहते है की आनंद और सफलता यही मनुष्य के जीवन का ध्येय है।
मनुष्य दिन के 24 घंटे आनंद व सफलता पाने के लिये Attempt करता रहता है। मनुष्य जिस दिन से अस्तित्व मे है, उस दिन से उसके बुद्धी का विकास होता आ रहा है।
जंगल मे रहने वाला मनुष्य आज luxurious houses मे रह रहा है। Science ने आज बहुत बडी प्रगती कर ली है, मनुष्य ने अपने प्रयासोसे पुरे धरती को एक कर दिया है। समाज मे अन्याय ना हो इसलिये कानून व न्यायालय बनाये है ।
दुनिया के सबसे बुद्धिमान प्राणी मे मनुष्य की गिनती होती है, उसने अपने बुद्धी से जीवन मे बहुत बडी क्रांती लाइ है, अच्छे स्वास्थ्य के लिए भी बहोत बडे बडे खोज किये है।
मनुष्य ने अपने आराम के लिए लाखो वस्तू का आविष्कार किया। टीव्ही, डीव्हीडी, मूव्हीज, एअर कंडिशनर, खूबसूरत घरो का निर्माण किया, मोबाईल, फोन, रेडिओ, हवाई जहाज इन सबका आविष्कार किया।
Science ने मनुष्य को एक अच्छे व आनंद जीवन जीने का रस्ता खोज लिया। मनुष्य ने यह सब खोज अपने जीवन मे सुख, शांती, सफलता और आनंद लाने के लिए किया, मगर सारे प्रयासो के बाद भी मनुष्य के जीवन मे सुख शांती नही आ सकी। Science बहुत बडे बडे खोज कर रहा है, मगर मनुष्य के जीवन मे क्रोध, असफलता, अहंकार, चिंता, तणाव इनका साम्राज्य कम नही हुआ है ।
लाखो वर्ष के अच्छे प्रयासो के बाद भी मनुष्य चिंता और दुःख से भरा हुआ है। लाखो -करोडो की संपत्ती पाने के बाद भी मनुष्य मर- मर कर जी रहा है। विज्ञान, धर्म, समाज मनुष्य को सुखी करणे मे असफल हो गये है।
मनुष्य कुदरत की अद्भुत देन है मगर वो क्या दुःख चिंता भोगने हेतु संसार मे आया है?, नही, तो सुखी व आनंदित जीवन जीने के लिए आया है। लेखक कहते है की मन की शक्ती हो का अच्छी तरह से उपयोग किए बिना मनुष्य सुखी व शांत नही हो सकता।
लेखक दीप त्रिवेदी हमे एक उदाहरण देते है की एडिसनने बल्ब का खोज करने के लिए हजारो प्रयोग किये और 6000 प्रयोग के बाद उसने कार्बन फिलामेंट की खोज की और सब दुनिया को प्रकाशमान कर दिया, उसी तरह हम अपने जीवन को रोशनी से भर देना चाहते है और उसके लिए हजारो प्रयोग कर रहे है।
जीवन मे सुख -शांती पाने के लिए मन के कार्य प्रणाली हे बाबत हमे विस्तार से जानना होगा।लेखक कहते है की मनुष्य की सारी सफलता और असफलता का राज उसकी मन की गहराईयो में ही छुपा पडा है।
(Main Mann hoon Hindi Book Summary)
Chapter Two – मन का अस्तित्व
लेखक दीप त्रिवेदी इस Chapter मे हमे मन के एक्सिस्टेंस (अस्तित्व) के बारे मे जानकारी देते है। लेखक कहते है की सारे मनुष्य मैं मन समान रूप से उपस्थित रहता है, मन को समझने के लिए बडे- बडे बुद्धिमानोने प्रयास किया मगर उन्होने मुह की खाई है, मन को समझना इतना आसान नही है।
साइंस मन के अस्तित्व के बारे मे भ्रमित है। Science टाईम और स्पेस के भीतर वस्तू की कार्यप्रणाली खोजने का नाम है। साइंस उसी वस्तू की खोज करता है जो उसकी प्रयोगशाला मे आती है । चांद और मंगल पर कदम रखने वाला विज्ञान, उसने ब्लॅक होल की खोज की, बिग -बँक थेरी पर भी प्रयोग कर लिये मगर मन की थ्योरी क्या है ? और उसका अस्तित्व क्या है? इसे अब तक समज नहीं आया है।
लेखक दीप त्रिवेदी कहते है की मन का कोई अस्तित्व नही है। मन टाईम और स्पेस से पूर्णतः मुक्त है, इसी कारण विज्ञान मन के अस्तित्व को नही स्वीकार सखा। विज्ञान ने मनुष्य के दिमाग (Brain) को ही प्रमुख केंद्र मान लिया, मन को प्रमुख केंद्र नही माना। मनुष्य के जीवन में ब्रेन दस प्रतिशत प्रभाव डालता है और बाकी सारा प्रभाव मनुष्य के जीवन मे मन का है।
विज्ञान की भाषा मे मन अदृश्य है। मन अदृश्य होने के कारण मन की शक्ती और उसके भाव भी अदृश्य है। मनुष्य की जीवन मे उत्पन्न होने वाली सुख, दुःख, इच्छा, पचतावा, क्रोध ,चिंता, व्यथा, मस्ती, मूड ये सारे भाव मन के द्वारा ही उत्पन्न किये जाते है। याने मनुष्य की जीवन मे सिर्फ मन काही अस्तित्व है।
लेखक दीप त्रिवेदी आगे कहते है की विज्ञान मन के अस्तित्व को नही मानता। विज्ञान यह भी जानता है कि तमाम शारीरिक कष्ट मनुष्य के जीवन को नर्क बना देते है। सुख और शांती मनुष्य के जीवन की प्रमुख महत्त्वकांक्षा है। मनुष्य जीवन मे इतने सारे वैभव है मगर उसके बावजूद मनुष्य दुःख, चिंता व क्रोध से भरा क्यों रहता है।
विज्ञान ने यह खोजने का भी प्रयास किया की चिंता करते समय ब्रेन कोन सा केमिकल छोडता है और कौन सी ग्रँड कोनसा रस छोडती है, इसमे विज्ञान को सफलता मिली और उसने यह कह दिया की तमाम भावो के उतार- चढाओ के पीछे ब्रेन ही है। मगर यह सही नही, क्यूकी ब्रेन को भाव मन भेजता है और ब्रेन उसे सिर्फ प्रतिक्रिया देता है।
विज्ञान ने कोई दवा या इंजेक्शन सर्च नहीं किया की अमुक केमिकल छोडने के बाद उसे चिंता ही ना हो। इससे कोई बात नही बनी तो विज्ञान ने डीएनए (DNA)और जीन्स की भी खोज की।लेखक आगे कहते है की यदि माइंड टाईम और स्पेस के भीतर होता तो साइंस माइंड की पुरी एनालिसिस कर मनुष्य के जीवन मे से चिंता और क्रोध को कब का गायब कर देता।
मन को हम अपने अंदर महसूस करना प्रारंभ कर सकते है। मनका अस्तित्व हमारे भीतर है और विज्ञान को एक ना एक दिन मन के दृश्य और अदृश्य भाव को पहचाना ही होगा।
लेखक दीप त्रिवेदी आगे कहते है की आनंद और सफलता हर मनुष्य का अधिकार है। वो अधिकार उसे तभी मिल सकता है जब वो मन के अस्तित्व के बारे मे जानने लगे, मन की अस्तित्व की दुनिया को पहचान सके।
(Main Mann hoon Hindi Book Summary)
Chapter Three- मन के उपद्रव
लेखक दीप त्रिवेदी इस चैप्टर में हमे हमारे जीवन मे मन के जो उपद्रव होते उसके बारे मे जानकारी देते है।
मन के उपद्रव (Troubles of mind) से हर कोई परेशान है । मानव मन के कार्य प्रणाली से पुरी तरह अंजान है। इसीलिए मानव हर रोज मन की उपद्रवो (Nuisance)का शिकार होता है।
लेखक यहा हमे एक उदाहरण देते है – एक युवक बगीचे मे आराम से बैठा हुआ था तब बगीचे मे उसका एक मित्र आया। अपने मित्र को शांत देख उसे रहा नही गया और वो बोला की ,”अरे तुम यहाँ शांत से बैठे हुए हो और तुम्हारी पत्नी किसके साथ घुमने गई है”
यह सुनते शांत बैठा हुआ मित्र गुस्से से लाल हो गया और बोला की, “कौन है वो?, मे उसे छोडूंगा नही” मगर कुछ देर बाद उसे याद आया की उसकी तो अभी शादी भी नही हुई है। अब देर हो चुकी थी और उसके इस मूर्खता का प्रदर्शन उसके मन के कारण हो चुका था।
हमारा मन wild waves पैदा करने वाली फॅक्टरी है और मन पर कोई नियंत्रण न होने की वजह से मनुष्य मन के उपद्रवो का शिकार हो जाता है और न चाहते हुए भी मन के उपद्रव (Troubles of mind)के कारण उसके आपसे रिश्ते बिगड जाते है।
सब अच्छे होते हुए भी मन के कारण मनुष्य कई मुसीबतो मे फसता चला जाता है।मन के कारण मनुष्य बुद्धिमान और समजदार होने के बावजूद पागलपण करने लगता है।
मन के उपद्रवो पर धर्म और शास्त्र भी कोई समाधान खोज नही पाये है। मन के उपद्रव से हमे बचना है तो हमे मन के बारे मे अच्छी तरह से जान लेना होगा, मन की सरचना (Structure of mind) कैसी होती है?, उसके बारे मे ज्ञान हासिल करना होगा।
(Main Mann hoon Hindi Book Summary)
अध्याय ४- मन की संरचना-Structure of Mind
लेखक दीप त्रिवेदी इस अध्याय में हमें मन की संरचना के बारे में बताते हैं। वह बताते हैं की माइंड संपूर्ण कॉम्प्लिकेटेड मेकैनिज्म के साथ यह मनुष्य के नाभि में आदर्श स्वरूप से स्थित है इसलिए यह विज्ञान की पकड़ के बाहर है। मन के मेकैनिज्म के साथ मन के प्रमुख सात प्रकार है उसमें से कुछ उपद्रवी है तो कुछ अद्भुत शक्तियों से भरे पड़े हैं। उसे हम आगे देखते है-
उपद्रव मचाने वाले तीन स्वरूप है
1 कॉन्शियस माइंड
2 सबकॉन्शियस माइंड
3 अनकॉन्शियस माइंड
मन की शक्तियों के चार केंद्र है
सुपर कॉन्शियस माइंड
कलेक्टिव कॉन्शियस माइंड
स्पॉन्टेनियस माइंड
अल्टीमेट माइंड
ऊपर दिए हुए मन के स्वरूपों का प्रकार डिफरेंट है। मन के कुछ प्रकार लक्षण पावर से भरे हैं तो कुछ उपद्रव से भरे हैं।
मन के इस प्रकारों को समझने से पहले आपको छोटे बच्चों का मन समझना होगा। उस मन के तमाम स्वरूप और मन के प्रभाव व मन के कार्यकल्पों के बारेमे समझने में आसानी होगी तथा सभी बच्चे करीब करीब एक समान मन लेकर पैदा होते हैं।
बच्चों में कोई भेदभाव नहीं होता, फर्क सिर्फ उनके डीएनए (DNA ) तथा जीन्स में होता है। फिर बच्चों के मन पर लौट आओ तो बच्चे प्रमुखता से दो ही भाषा जानते हैं एक प्रेम की दूसरी क्रोध की। बच्चे संसार की सबसे शक्तिशाली ऊर्जा से भरे होते है। प्रेम और क्रोध यह जीवन की भावना भिन्न-भिन्न है।
छोटा बच्चा प्रेम और क्रोध की भावना समझता है। बच्चों को कोई मनपसंद चीज दी जाए तो प्रेम पूर्वक तारीख से उसका आनंद लेता है ,यदि उससे वह चीज छीन ली जाती है तो वह क्रोध में भरकर तांडव मचाता है।
बच्चा ऊर्जा का अक्षय भंडार लेकर पैदा हुआ है। रिश्ते की बात की जाए तो बच्चा अपने मन को पहचानता है, बाकी रिश्तो से उसे कोई लेना देना नहीं। बच्चों को जिसके साथ अच्छा लगता है उसके साथ वह खेल लेते हैं। जिसके साथ नहीं जमता तो गुस्से करके दूर हट जाते हैं ।
व्यर्थ की जानकारी देकर उसे अपना देश, धर्म,जातीय समाज इसके बारे में बताया जाता है उसे कुछ मालूम नहीं होता है। छोटे बच्चे ऊर्जा से भरे हुए होते हैं, बच्चे कितना भी उपद्रव मचा ले मगर वह कभी थकते नहीं है।
चार बूढ़े आदमी उन्हें संभालने लगे तो बूढ़े आदमी थक सकते हैं मगर बच्चे नहीं थकते। कोई एथलीट तो घबरा कर यह कहेगा कि ओलंपिक में मेडल लाना आसान है मगर बच्चों के साथ खेलना आसान नहीं। कुल मिलाकर प्रेम और क्रोध यह संसार के सबसे शक्तिशाली ऊर्जा है । जिन मनुष्य ने इन दोनों ऊर्जा को खो दिया वह अपने जीवन में उर्जाहीन हो जाता है।
बच्चों को जो चाहिए वह हासिल कर ही लेते हैं, उन्हें जो चाहिए वह मुस्कुरा के लाड से अपने पेरेंट्स से पाही लेंगे, अगर उन्हें कुछ दिया नहीं जाए तो वह क्रोध से इतना उपद्रव मचा देंगे की उन्हें जो चीज चाहिए वह हासिल करके ही रहेंगे।
दूसरी चीज यह है कि मनुष्य कितना भी क्रोध करें मगर उन बच्चों के साथ रिश्ता अच्छा हो जाता है। कई बार तो गुंडे या लुटेरों के बीच फंसे मां-बाप अपने बच्चों के कारण बच जाते हैं। साथ में बच्चा देख हर कोई करुणा में डूब जाने के लिए मजबूर हो जाता है। बच्चो में निर्दोषता, भोलापन, चंचलता और Concentration यह सब उनके स्वाभाविक गुण होते है।
बच्चे सुपर कॉन्शियस माइंड में पैदा होते हैं जो अत्यंत शक्तिशाली है।
बच्चा जीस मन में born होता है उसे सुपर कॉन्शियस माइंड कहते हैं। यह माइंड प्रेम और क्रोध से भरा होता है और उसमें ऊर्जा भी भरपूर होती है। दुनिया में जो भी सफल व सुखी इंसान है उन्हें पता हो या ना पता हो तो अपने सुपर कॉन्शियस माइंड में जीते हैं।
छोटा बच्चा धीरे-धीरे बड़ा होने लगता है, उसे परिवार समज आने लगता है। उसे धर्म और जाति बताई जाती है। अपनेमें वह अपना-पराए का भेद उसके मन में पैदा किया जाता है।जीवन की व्यर्थ उद्देश्य पकड़ कर उसे कुछ बनने हेतु प्रोत्साहित किया जाता है। बस इन सबको उसका कॉन्शांइस माइंड बनना शुरू हो जाता है और यह कॉन्शियस माइंड बहुत कमजोर होता है। यहां से बच्चे की दुर्गती शुरू होने लगती है।
स्वतंत्रता से जीने वाले बच्चों को भारी बैग उठाकर स्कूल में जाने को मजबूर किया जाता है। जो बच्चा प्रेम चाहता है, खेलना चाहता है उसे स्कूल में अनुशासन के नाम पर सताया जाता है, उसे घर और स्कूल में प्रेम मिलना स्टॉप हो जाता है। बच्चे रोते-रोते स्कूल जाते हैं, क्योंकि स्वतंत्रता छोड़कर उन्हें अनुशासन में रहना होता है।
अपना कैरियर करने की दबाव में बच्चों में ऊर्जा ,क्रोध व प्रेम का स्वभाव दबता चला जाता है। सुपर कॉन्शियस माइंड में पैदा हुए बच्चों को व्यर्थ की जानकारी मिलनी शुरू हो जाती है तब यहासे उनका कॉन्शियस माइंड बनना शुरू हो जाता है। और फिर उसेके क्रोध और प्रेम को दबाते हुए उसका सबकॉन्शियस और अनकॉन्शियस माइंड मजबूत कर उसे चिंता,दुख,सहानुभूति के भाव से भर देते है लेकिन इतने से भी आप बुद्धिमानों का मन का भरता है।
लेखक दीप त्रिवेदी कहते है की बच्चों की कॉन्शियस, सबकॉन्शियस और अनकॉन्शियस माइंड मजबूत करते चला जाना ही उनकी दुर्गति का कारण बन जाता है। इन चक्करों से बचा लाखों में कोई एक सफल हो जाता है। विज्ञान कहता है कि बच्चे का 80% से ज्यादा मानसिक विकास उसके बचपन में ही हो जाता है।
बच्चा की अगर सुपर कॉन्शियस माइंड की स्थिति संभाल कर रखी जाय तो बच्चा ने अपना सुपर कॉन्शियस माइंड संभाल लिया तो उसे जीवन में सफल होने के लिए कोई रोक नहीं सकता।
लेखक हमें इस अध्याय में बच्चों की साइकोलॉजी के साथ-साथ उनकी शुरुआती मनोदशा को तथा बढ़ती उम्र के साथ उनमें हो रहे बदलाव को समझते है। इस अध्याय में लेखक ने हमें कॉन्शियस माइंड, सबकॉन्शियस माइंड और अनकॉन्शियस माइंड के बारे में जानकारी दी है। बच्चो के सायकोलोजी का उदाहरण देकर लेखक बहुत सरल तरीकेसे माइंड के बारे में बताते है।
अध्याय अध्याय 5 मन के शक्तियों के केंद्र
लेखक दीप त्रिवेदी हमें इस अध्याय में मन के शक्तियों के बारे में और शक्तियों के केंद्र के बारे में जानकारी देते हैं। वह कहते हैं की मन अद्भुत शक्तियों का केंद्र है,मनुष्य के पूरे अस्तित्व में मन का अस्तित्व बहुत बड़ा है जो कुदरत के अस्तित्व से जुड़ा हुआ है।
मन की शक्ति के केंद्र को सक्रिय किए बगैर कोई भी मनुष्य जीवन में सुखी नहीं हो सकता। मन ऐसी शक्तियों से भरा पड़ा है जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। मनुष्य के हर सफलता के पीछे उसका मन ही है ,जितने भी सफल, सुखी व बड़े लोग हुए हैं वह सब मन के शक्तियों की केंद्र को जानकर हुए हैं।
लेखक दीप त्रिवेदी आगे बताते हैं कि छोटा बच्चा सुपर कॉन्शियस माइंड में पैदा होता है, जो कि मन की शक्ति का अदभुत केंद्र है। हमें इस बात का ध्यान रखना है कि उसका क्रोध व प्रेम ना दब जाने पाए। बचपन ही मनुष्य के जीवन का टर्निंग पॉइंट होता है।
लेखक दीप त्रिवेदी हमें इस अध्याय में मन के केंद्र और उनके कार्यप्रणाली के बाबत विस्तार से बताते हैं वह बताते हैं की मन के चार प्रमुख केंद्र है।
1.सुपर कॉन्शियस माइंड
2.कलेक्टिव कॉन्शियस माइंड
3.स्पॉन्टेनियस माइंड
4.अल्टीमेट माइंड
1 . सुपर कॉन्शियस माइंड
सुपर कॉन्शियस मन का गुण होता है ध्यान, उत्साह और आत्मविश्वास।मनुष्य ने अपने जीवन में जो भी बड़ी सफलता पाई है इसी मन के सक्रिय होने पर पाई है।
लेखक दीपक त्रिवेदी कहते हैं कि थॉमस अल्वा एडिसन ने इसी मन के कारण बल्ब की खोज की और पूरी दुनिया को रोशन किया उनके नाम पर 1093 पेटेंट रजिस्टर है।
सफलता पाने के लिए उत्साह, आत्मविश्वास और Concentration इनकी जरूरत होती है । मनुष्य स्वयं भी इन सब को पाना चाहता है।
लेखक दीप त्रिवेदी कहते हैं कि आप यह सुपर कॉन्शियस माइंड को सक्रिय करने पर ध्यान दें की छोटा बच्चा जिसका सुपर कॉन्शियस माइंड सक्रिय होता है उसके साथ व्यर्थ की छेड़छाड़ कर उसके सुपर कॉन्शियस माइंड को कमजोर नहीं करना है।
2. कलेक्टिव कॉन्शियस माइंड
लेखक दीप त्रिवेदी कहते हैं की मन का यह स्वरूप अपने intense रूप में प्रकट होता है ,तब वह सभी मनुष्य के मन से कनेक्ट होता है। इसी मन के कारण मनुष्य अपने जीवन की सफलता छूता चला जाता है।
मन के तल पर हर क्रिया की बराबरी पर प्रतिक्रिया होती है।
अचानक ही कोई गाना रातो -रात फेमस हो जाता है, किसी नेता का दिया हुआ नारा अचानक सबको भाने लगता है और देखते-देखते वह बड़ा नेता बन जाता है।यह सब कलेक्टिव कॉन्शियस माइंड का कमाल होता है।
लेखक दीपक त्रिवेदी कहते हैं कि कलेक्टिव कॉन्शियस माइंड सब में सक्रिय रहता है, फर्क उसके कमजोरी या मजबूत होने का है और चुकी अधिकांश लोगों का यह मन कमजोर होता है, इसलिए जीवन भर उनका शोषण होता रहता है धर्म के नाम प,र सेहत के नाम पर, शिक्षा के नाम पर और किसी के नाम पर।
यह लोग मेहनत भरपूर करते हैं परंतु इसके बावजूद सुकूनऔर सफलता उनको नहीं मिलती। इनके मेहनत का फल किसी दूसरे और को मिलता है।
3 . स्पॉन्टियस माइंड
लेखक दीप त्रिवेदी कहते हैं कि स्पॉन्टेनियस मन प्रकृति की ‘क्षणिक चेतना’ (Transient consciousness) का एक अंग है। जिसका यह मन सक्रिय हो जाता है वह सोचता नहीं है ।वह अपने जीवन के सारे फैसले इसी मन के आधार पर लेना शुरू कर देता देता है। अच्छा और बुर बाबत हुआ विचार नहीं करता।
कवि, गीतकार और लेखक यह इस मन का एक उदाहरण है।
क्रिएटिविटी निर्माण करना यह इस मन का काम है।
पॉइंट ऑफ़ क्रिएटिविटी से काम करके वो रातो -रात विश्व प्रसिद्ध हो जाते है। चारों ओर उनकी ख्याति होती है।जीवन में सफलता तब मिलती है जब आप कुछ नया और धमाकेदार करते हैं।कोई आविष्कार हो, कंप्यूटर की खोज हो , एप्पल या फेसबुक का आविष्कार हो या कोई नया साम्राज्य हो इसी मन के सहारे निर्माण होता है ।
दिल की आवाज सुन कर कुछ नया करना इस मन का स्वभाव है ।
जीवन के सारे महत्वपूर्ण निर्णय इसी मन के सक्रिय होने से लिए जाते है ।
4. अल्टीमेट माइंड:-
लेखक दीप त्रिवेदी कहते हैं कि अल्टीमेट माइंड सबसे शक्तिशाली व महत्वपूर्ण मन है। इसके कार्य क्षेत्र व स्वभाव को समझना थोड़ा कठिन है।
आपकी हर तरफ कोई नई घटना घटती रहती है और इसे कोई सब देखता रहता है। तभी तो उसे यह सब चलने का पता चल रहा है, कोई तो है जिसके पर्दों पर यह सारा नाटक चल रहा है, क्या आपने कभी इस तरह सोच है क्या ?आपने कभी चिंतन किया है कि वह कौन है?
मन, बुद्धि, शरीर और हृदय सब सक्रिय है लेकिन अभी इस तक आपकी पहुंच नहीं इसलिए आप इससे अनजान है।
जीवन में कितने भी उत्तर चढ़ाव आए, जो इस मन तक पहुंच गया उसे कोई फर्क नहीं पड़ता, उसकी शांति और प्रसन्नता बनी रहती है।
लेखक कहते हैं कि इस मन के एक्टिव हो जाने के बाद एक तरीके से उसका मानव जगत पर साम्राज्य हो जाता है।
(Main Mann hoon Hindi Book Summary)
अध्याय ६- मन के अन्य से संबंध-Mind’s Relation To Others :-
लेखक दीप त्रिवेदी इस अध्याय में हमें मन और शरीर का संबंध,मन और परिस्थितियों का संबंध और मन और बुद्धि का संबंध इनके बारे में जानकारी देते हैं।
लेखक कहते हैं कि मनुष्य के जीवन को निश्चित ही उसका शरीर, बुद्धि और बाह्य परिस्थितियों प्रभावित करती है इस प्रभाव से मन अछूता नहीं रहता मन पर भी इसका असर पड़ता है।
शरीर और मन दोनों एक दूसरे को प्रभावित करते हैं परंतु वहा सबसे ज्यादा प्रभाव मन का ही रहता है।
इसके लिए लेखक यहा हमे स्टीफन हॉकिंग का उदाहरण देते हैं ,तमाम शारीरिक अक्षमता वो के बावजूद वे विश्व के बड़े विद्वानों में शामिल है।
स्टीफन हॉकिंग बोल नहीं सकते, शरीर पूरी तरह निष्क्रिय है, बस अपने गालों से अभिव्यक्ति करना सीख उन्होंने यह मुकाम पाया है । कहने का तात्पर्य यह है की मजबूत मन के लिए शरीर कोई बाधा नहीं है। शरीर का मन पर इतना असर नहीं पड़ता, मनुष्य की अधिकांश बीमारियां उसके मन की कमजोरी के कारण होती है।
जीवन मन से चलता है और मन नियम से चलता है, तो मन के नियम समझने से ज्यादा आवश्यक क्या है?-दीप त्रिवेदी
मन और परिस्थितियों का संबंध
लेखक दीप त्रिवेदी यहां हमे बताते है कई मनुष्य जिस देश में पैदा होता है उस देश का उसपर गहरा असर पड़ता है। यह असर उसके मन पर भी पड़ता है।
जीवन में स्थिति कैसे भी हो मन के मजबूती के सहारे जीवन मे सुख पाया जा सकता है। चाहे संगीत हो, विज्ञान हो या व्यवसाय हो, मन के मजबूती के सहारे हम उसमे सफल हो सकते है।
मन और बुद्धि का संबंध
लेखक कहते हैं की मन और बुद्धि के कार्य प्रणाली बिल्कुल भिन्न है।
बुद्धि अपने आप में एक कॉम्प्लिकेटेड स्ट्रक्चर है और जिसका शरीर में भौतिक अस्तित्व भी है।
मन एक कॉम्प्लिकेटेड मेकैनिज्म है परंतु सिर्फ तरंगों का एक खेल है,मानव शरीर में मन का कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है।
समस्या और परंपराएं सब कुछ मनुष्य की बुद्धि की उपज है।
मन का समाज या परंपराओं से कोई लेना-देना नहीं।
शरीर को नियंत्रित व संचालित (Powered) करना बुद्धि का काम है।
मन शरीर को सीधे नियंत्रित नहीं करता।
लेखक दीपक त्रिवेदी कहते हैं की मन और बुद्धि का फर्क समझे बगैर जीवन को सफल बनाने का कोई उपाय नहीं मन ही तरह बुद्धि के भी अच्छे बुरे प्रभाव होते हैं।
जो मनुष्य मन और बुद्धि के अच्छे प्रभाव का जमकर उपयोग करता है वह जीवन में प्रगति कर लेता है।
अध्याय -7-*मन को दबाने के दुष्परिणाम*
लेखक इस अध्याय में हमें बताते हैं कि जीवन में सुखी व सफल होना है तो बड़े गहराई से समझना होगा की मन के तल पर उठ रही तरंगों (Waves) को सिर्फ बुद्धि रोक सकती है।
लेखक कहते हैं कि मन में जो भी तरंग उठ रहे हैं उसे बुद्धि द्वारा रोकना नहीं है, चाहे वह तरंगे प्रेम, आनंद और उत्साह के हो।
जब क्रोध आता है तो मनुष्य के पास दो रास्ते हैं या तो बुद्धि की सुनी या सुने मन की।
क्रोध को दबाने के कुछ दुष्परिणाम भी हो सकते हैं।
क्रोध आने पर क्या होता है ? यह हमें पता है मगर क्रोध को दबाने से भी कुछ परिणाम होते हैं। मन और बुद्धि के इस संघर्ष में कभी बुद्धि की जीत होती है तो कभी मन की। क्रोध मन के ऊर्जा का सबूतहै।
क्रोध धर्म और समाज को रास नहीं आता, मनुष्य क्रोध पर उतर आए तो उनकी दुकान कैसी चलेगी। धर्म और समाज के ठेकेदारों ने कहा है की क्रोध बुरा है, क्रोध न करें क्योंकि क्रोध ऊर्जा है आज क्रोध करेंगे तो कल विरोध पर भी उतार आ सकते है।
कभी-कभी क्रोध न करने पर क्रोध आना ही बंद हो जाता है। लेखक दीप त्रिवेदी कहते हैं की संपूर्ण मनुष्य जाति धर्म और समाज की इसी रची साजिश का शिकार हो गई है।
क्रोध (Anger) कभी दबता नहीं और कभी ना कभी तो बाहर आ ही जाता है।
लेखक कहते हैं कि अगर आपके कमरे में चूहे एकत्रित हो गए हैं तो दरवाजा खोलकर उन्हें जाने दे, अगर आपने दरवाजा बंद कर दिया तो चूहे की तादात और भी बढ़ेगी वैसा ही क्रोध के बारे में है।
आप अपने भाव को जितना दबायनके वह विकृत होकर सबकॉन्शियस और अनकॉन्शियस माइंड में जमा होते चले जाएंगे।
कुछ लोग टीवी पर WWE देखकर अपनी क्रोध को रास्ता दिखाते हैं।
लेखक कहते हैं की मन के तल पर दबे भाव दबा ही नहीं जा सकते वह कभी ना कभी बाहर आ ही जाते हैं।
दबे हुए क्रोध का अधिकांश हिस्सा इस पर निकलता है जिसकी विरुद्ध आपने दबाया हुआ है। मन के तल पर न सिर्फ क्रिया की प्रतिक्रिया होती है बल्कि प्रतिक्रिया की प्रक्रिया भी होती ही रहती है।
.छुटकारा तो सिर्फ एक बात समझ कर हो सकता है की जो है उसे निकाल दो और जो हो गया उसे भूल जाओ।
लेखक कहते हैं कि जीवन में दबाया हुआ क्रोध अन्य कई तरीकों से आपके प्राण ले ही रहा है, सबसे ज्यादा खतरनाक बात तो यह कि आपका वही दबा हुआ क्रोध रूपांतिक होकर चिंता, भय और ईर्ष्या के रूप मे सामने आकर मनुष्य के जीवन को बर्बाद कर देता है।
अध्याय 8 –दुख और चिंता दूर करने के उपाय:-
लेखक दीप त्रिवेदी इस अध्याय में हमें बताते हैं कि मनुष्य के जीवन को सर्वाधिक मन ही प्रभावित करता है तथा जीवन में आ रहे तमाम दु:ख, चिंता और तनाव का मूल कारण मन ही है।
लेखक दीप त्रिवेदी कहते हैं कि हमें वह उपाय खोजने होगे जिससे हम जीवन से दु:ख और तनाव दूर कर सके।
लेखक आगे इसी विषय पर चर्चा कर रहे हैं
अध्याय 9- वर्तमान:-
लेखक दीप त्रिवेदी इस अध्याय में हमें वर्तमान के पावर के बारे में इनफार्मेशन देते हैं।
मनुष्य भूतकाल(Past ) में घटी हुई घटना से दुखी है और वर्तमान में जो घटना होने वाली है उसके बारे में चिंतित है मगर उसका ध्यान वर्तमान में नहीं है।
जो बीत गया उसकी कोई कीमत नहीं है, भविष्य जो आया नहीं वह अनिश्चित है फिर भी मनुष्य भविष्य की चिताओं में डूबा रहता है। ऐसा सोचने से उसके हाथ कुछ नहीं लगता वह ऊर्जा हीन हो जाता है।
भूत और भविष्य के चक्कर में वर्तमान हमारे हाथ से निकल जा रहा है, हमें वर्तमान को पहचानना होगा क्योंकि वर्तमान वह जादू है जो मनुष्य की समस्याओं और दुखों का निराकरण कर सकता है।
हमारे जीवन का जो आज का पल (today’s moment )है उसे हम हंसी -खुशी से जीना हैं।
आनंद सिर्फ उन चीजों का लिया जा सकता है जो आपके साथ है। लेखक कहते हैं की पत्नी साथ में हो तो जीवन बर्बाद कर देने वाली लगती है और मर जाए तो उसके बिना जीना मुश्किल हो जाता है।
वर्तमान में भूत और भविष्य को लाने की कोशिश ही सारे दुखों की जड़ है।
खुशी से जीने के लिए मनुष्य को वर्तमान (present) के बिना कभी कुछ उपलब्ध हुआ नहीं है। हमें वर्तमान में खुशी से जीना होगा। वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करके हमारा काम करना होगा ,एक वर्तमान है जो भविष्य और भूत को सुधार सकता है।
लेखक कहते हैं कि हमें वर्तमान में जीने की कला सीख कर तमाम दुख और चिंता को हमेशा के लिए दूर करना होगा।
(Main Mann hoon Hindi Book Summary)
अध्याय 10 –व्यक्तित्व:-
लेखक दीप त्रिवेदी इस अध्याय में हमें व्यक्तित्व (personality)क्या होता है? और उसका जीवन में क्या महत्व है?, इसके बारे में जानकारी देते हैं।
मनुष्य जीवन का व्यक्तित्व उसके बाहरी व्यक्तित्व से कई ज्यादा उसके भीतरी व्यक्तित्व पर निर्भर होता है। लेखक दीप त्रिवेदी बाहरी व्यक्तित्व और भीतर व्यक्तित्व इसके बारे में जानकारी देते हैं।
बाहरी व्यक्तित्व इसे मनुष्य इकलौता व्यक्तित्व मान बैठता है, जबकि वास्तव में व्यक्तित्व की यह केवल ऊपरी सतह है। इसमें कुछ कमजोरी रह जाए तो भी इसका आपके जीवन पर कोई विशेष असर नहीं पड़ता है ।
अच्छा बोलना, स्टाइलिश होना या सुंदर दिखना दूसरों को अच्छा लगता है। लेकिन यह हमेशा आपका जीवन आगे बढ़ाने वाला सिद्ध नहीं होता है।
भीतर व्यक्तित्व का महत्व ना जानने और उसे पर ध्यान न देने की वजह से मनुष्य का उसका अपने ऊपर कोई नियंत्रण नहीं रह गया है।
आज का दिन कैसा जाएगा ? यह मनुष्य के मूड पर निर्भय हो गया है। यह भीतरी व्यक्तित्व का परिणाम है। दूसरे लोग आपके साथ कैसा व्यवहार करते हैं ? उस व्यवहार से आपका दिन कटता है।
आज आपने कोई बड़ी सफलता पाई है और इस खुशी के मौके पर आप पूरे परिवार के साथ होटल में खाना खाने गए हुए हैं, यहां सब अच्छे मूड में है लेकिन अभी खाना शुरू ही किया था कि किसी ने आपके साथ दुर्व्यवहार कर दिया और उसे दुर्व्यवहार के कारण सब खत्म हो गया, आधा खाना छोड़ पाव पर चढ़ते हुए आप घर पर आ गये। ये सब व्यक्तित्व के कारण हो गया।
किसी धर्मगुरु ने कोई नहीं लालच का शगुन दिया नहीं की पहुंच गए उस उपाय को आजमाने, किसी ने कोई Businessशुरू किया और वह बहुत कमा रहा है, ऐसा देख बिना कुछ सोचे समझे आप कूद पड़े उसे Business में,किसी ने कोई चीज खरीद नहीं किया आप भी खरीद को उतावले हो गए ,यह सब भीतरी व्यक्तित्व के कारण होता है।
लेखक दीप त्रिवेदी कहते हैं कि हर मनुष्य ने प्रतिक्रियाओं के जगत में जीना जीना शुरु कर दिया है। अपने तमाम खुशियों की चाबी उसने दूसरों के हाथ में दे दी है और दूसरे लोग हमें कभी happy रहने नहीं देते।
बड़ी सफलता जो पाना चाहता है जो भीड़ में अकेले खड़े होने की क्षमता रखता है।
व्यक्तित्व निर्माण हेतु हमें बुरे विचारों से बचना होगा क्योंकि यह विचार धीरे-धीरे सिद्धांत मान्यताओं (Recognition) में परिवर्तित होते चले जाते हैं और मनुष्य जिद्द पकड़ना शुरू कर देती है।
लेखक दीप त्रिवेदी आखिर में कहते है कि भीतर व्यक्तित्व निखर कर न सिर्फ दु:ख को वह दूर कर सकता है उसके कारण उठने वाले रोज के क्रोधों से जल्द छुटकारा पाने की कोशिश कर सकता है।
जीवन में अच्छे से कदम भी बढ़ाएंगे और इस हेतु बहुत कुछ ना भी कर पाए तो इतना तो कर लेंगे की भविष्य में आप अपने सारे निर्णय ऑन द स्पॉट ही लेंगे बस इतनी मात्रा से भी आपका विचारों सिद्धांतों और मान्यताओं से छुटकारा हो ता चला जाएगा।
अध्याय 11- हीनता :-
लेखक दीप त्रिवेदी कहते हैं कि मनुष्य का बर्बादी का प्रमुख कारण हीनता (Inferiority)हो सकता है। हीनता यानी कॉम्प्लेक्स के कारण वह खुलकर कभी जी नहीं ।
मनुष्य के मन को कोई कॉम्प्लेक्स नहीं पकड़ता। कॉम्प्लेक्स का अर्थ है मनुष्य का जो भी व्यक्तित्व है उसे व्यक्तित्व का स्वीकार नहीं करना।
कोई भी बच्चा जब जन्म लेता है तो उसमें कॉम्प्लेक्स कभी भी नहीं होता उसमें कॉम्प्लेक्स का व्यक्तित्व बनाया जाता है।
चांद, तारे, पृथ्वी, फुल और काटे उनका जो असली ढंग है, उस ढंग से वो कभी भी शिकायत नहीं करते। वो जैसे है वैसे है।
बच्चों का जो भी ढंग रहता है उसे कुछ वह अलग करना चाहता है मगर उसके माता-पिता, शिक्षक या समाज उसके ढंग से उनसे कुछ करने नहीं देते है।
बच्चा जैसा होता है उसमें वह खुश होता है मगर बड़े-बड़े होते होते अच्छा बुरा समझने का स्वीकार कर देता है और उसका जीवन बदल जाता है। इसका उसके जीवन में पूरा प्रभाव पड़ता है और इस प्रभाव के कारण उसमे हीनता का जन्म होता है।
मनुष्य में बचपन से उसमें कोई कमी नहीं होती और वह किसी से कमजोर नहीं होता है । जब मनुष्य भीतर से कुछ विपरीत महसूस करता है तो बार-बार Absurd की बातें दोहराने लगता है।
अभी तो मैं जवान हूं यह कहने वाला आदमी अब जवाब नहीं है,अब वह 50 के करीब हो चुका है और बोलता है अभी तो मैं जवान हूं यह सब बेतूकी बात कहता है ।
दुनिया का काम तुलनाये करना होता है, सो दुनिया को तुलनाये करने दो ,मनुष्य को इन मूर्खताओं से दूर रखकर अपने आप को पहचानना होगा। जो बात आपने नहीं है तो नहीं है और जो बात आपने है तो है। हमे कॉम्प्लेक्स से बाहर आना ही होगा।
दूसरे लोग जिसे अच्छा या बुरा कह रहे हैं वह वास्तव में कोई अच्छा या बुरा थोड़ी ही होता है ,अतः मनुष्य को उन बातों को तवज्जो ही नहीं देना चाहिए।
दूसरे लोगों के कहने पर बदलने की कोशिश भी नहीं करनी चाहिए क्योंकि इसके आगे चलकर गंभीर परिणाम आ सकते हैं।
तुलना करना मनुष्य की सारी हीनताओं की जन्मदाता है। जिस किसी मनुष्य में दृढ़ता नहीं होती वह जीवन में कुछ नहीं कर सकता।
लेखक दीप त्रिवेदी यहा हमसे निवेदन करते हैं कि,जो जैसा है वैसा ही स्वयं को स्वीकारना है।
स्वयं का स्वयं के प्रति Belief कभी भी कम नहीं होने देना है क्योंकि आप जैसे भी हो वहीं से आपके जीवन को आगे बढ़ाने का मार्ग निकल सकता है।
सिर्फ अपने को ही नहीं अपनी अक्षमताओं के बुराई को भी स्वीकार कर ले, वर्तमान में आपका जो भी अस्तित्व है वह पर्फेक्ट है।
लाइफ आपकी खुद की है और उसे सुधारना भी आपको है, तो फिर वह बदलाहट कब और कितनी लाना है इसका निर्णय भी आप ही करें और फिर जितना बदल जाए ठीक न बदल जाए तो भी ठीक परंतु हर समय आप जैसे है उसे स्वीकार कर ही चले जाय ।
अध्याय 12- लगाव:- (Attachment)
लेखक दीप त्रिवेदी इस अध्याय कहते है की अगर मनुष्य को दुखों से Freedom चाहिए तो उसे वस्तु या विचार सबसे अपना इंवॉल्वमेंट कम करना होगा, बहुत सारे दुखों का मूल इंवॉल्वमेंट होता है।
आप अपने परिवार से प्रेम करते हैं परंतु यह आपका प्रेम नहीं है यह आपका इंवॉल्वमेंट है।
लेखक प्रेम और इंवॉल्वमेंट का फर्क समजाते हैं की प्रेम का मतलब है, आप अपने परिवार का हीत चाहते हो परंतु उसे अपना नहीं मानते, जबकि इंवॉल्वमेंट का अर्थ है आप उसे अपना मानते हैं और यह अपना मानना ही इंवॉल्वमेंट है।
लेखक कहते हैं की मन के कार्य प्रणाली को बुद्धि से परिभाषित करना ही मनुष्य जीवन में सबसे बड़ी समस्या है। हमें मन और बुद्धि का फर्क पहचान होगा, नहीं तो हम confused होकर यही गलती दोहराते रहेंगे।
प्रेम एक भावना का नाम है जो बिना पक्षपात के स्वयं को संसार के हर मनुष्य जीना चाहता है। प्रेम हित ही चाहती है। आप चाहते हैं कि आपका परिवार खुश हो, दुनिया भले ही चाय भाड़ में यह भला कैसा प्रेम हुआ।
यदि रास्ते पर कोई एक्सीडेंट होता है, आपको क्षण भर के लिए दुख होता है मगर वही एक्सीडेंट घर के किसी सदस्य हो का हो तो जब तक वो आदमी वार्ड में ठीक नहीं होता तब आप दुख से भरे रहते है।
इंवॉल्वमेंट के कारण मनुष्य अपनी परेशानियों को बढ़ा देता है। जीस वस्तु में जितना इंवॉल्वमेंट उतना ही वह दुख देती है। इंवॉल्वमेंट तो आदतों से मजबूत होता है।
एक पक्षपात करना और दूसरा चुनाव करना, यदि आप इंवॉल्वमेंट से होने वाले दुखों से छुटकारा चाहते हो तो सबसे पहले तमाम पक्षपातों (Partiality) से बचे।
किसी वस्तु का चुनाव करने से बचना होगा क्योंकि जिस चीज का आप चुनाव करोगे एक दिन उसे आप अपना मानना शुरू कर देंगे और अपना मानते ही उस वस्तु के प्रति आपका इंवॉल्वमेंट हो जाएगा।
बेहतर है जो पसंद हो और उपलब्ध भी हो उसका आनंद भले ही ले, लेकिन उसका चुनाव कर उसे अपना मत बना लो।
उससे मोहित होकर उसके प्रति दृढ़ता से मत भर जाओ फिर देखिए आप आनंद तो हर रिश्ते या हर वस्तु का लेंगे। इंवॉल्वमेंट ना होने के कारण उससे उत्पन्न हो रहे अकारण दुखों से आप छुटकारा पा लेंगे ।
लेखक इस अध्याय के अंत में क हते हैं कि, मैंने ऐसा राज खोला है कि आप चाहे तो एक जादू से अपना जीवन पूरी तरह भर सकते हैं।
अध्याय 13 अपेक्षा (Expectation):
लेखक इस अध्याय में मनुष्य जीवन की जो भी अपेक्षाएं होती है उसके बारे में हमें जानकारी देते हैं ।
अपेक्षा क्या है?
मनुष्य के मन मुताबिक कोई घटना नहीं घटती है तो मनुष्य बदलाहट लाना चाहता है और यही से उसकी अपेक्षाएं शुरू होती है।
उसकी अपनी शिक्षा से, व्यवसाय से, धर्म से अपेक्षाएं शुरू हो जाती है। वह अपने परिवार से, मित्रों से भी अपेक्षा करता रहता है कि उसके मन मुताबिक सब हो जाए।
मनुष्य की अपेक्षा ही उसका इंवॉल्वमेंट बढ़ने लगती है और हर बड़ा इंवॉल्वमेंट उसकी अपेक्षाएं बढ़ता चला जाता है , फिर वह जीवन भर इस चक्कर से बाहर नहीं आ पाता है।
जीवन में बदलाहट की चाह के कारण मनुष्य की अपेक्षाएं बढ़ जाती है। हर समय उसके मन मुताबिक हो जाए यही उसको लगता है। अपेक्षा जब पूरी नहीं होती तो एक दूसरे के प्रति कटुता भरना शुरू हो जाती है।
मनुष्य बिना अपेक्षा के बिना कोई रिश्ता नहीं बना सकता और जब अपेक्षा टूट जाती है तो दुख और व्यथा के भवर में वह गिर जाता है।
लेखक दीप त्रिवेदी कहते है की इसलिए आप जीवन में कुछ अपेक्षा रखो ही मत, यह वाक्य अपने हजारों बार कहीं से सुना होगा। “जीवन में कुछ बदलना होगा तो स्वयं को पहले बदलना होगा।”
बड़े प्रयासों के बाद भी जीवन से क्रोध और चिंता की मुक्ति नहीं हो पा रही तो इसका कारण है मनुष्य अपने में बदलाहट नहीं ला पाता।
रिश्तो का आनंद उठाने के लिए आपको रिश्तो की अपेक्षाएं कम करनी होगी।जब मनुष्य से अपने से कोई शिकायत नहीं रहती तो कंपलेक्स उसके जीवन में रहेगा ही नहीं।
मनुष्य की तमाम अपेक्षा की शुरुआत अपना मानने से होती है। लेखक आगे कहते हैं कि जीवन के अधिकांश दुखों का कारण अपेक्षा है, हमें स्वयं को जैसा है वैसा स्वीकारना ही होगा।
एक बार यह स्वीकार आ जाए तो फिर यह भी समझ लेना कि इस स्वीकारते आने से बड़ा में जादू मनुष्य जीवन में दूसरा कोई नहीं है ।
फिर इस कला को आगे बढ़ते हुए दूसरे भी जैसे ही उन्हें स्वीकारते चलना होगा और जब इन दोनों बातों में काफी हद तक सफलता आई तो संसार को कभी न बदलने वाले सत्य को भी स्वीकार कर आगे चलना होगा इससे मनुष्य की इंवॉल्वमेंट और उसकी अपेक्षाएं दोनों एक साथ कमजोर पड़ जाएंगे और फलस्वरूप उसका जीवन आनंद व सफलता से भर जाएगा।
अध्याय 14- सफलता के सार सूत्र
लेखक इस किताब के इस छोटे से अध्याय में हमें बताते हैं कि निश्चित ही मनुष्य जीवन में दु:ख और कष्ट से बचाना है उतना ही जरूरी सफलता के शिखर भी छूना चाहता है। क्योंकि यह बहुमूल्य जीवन किसी भी कीमत पर साधारण जीवन जि कर व्यर्थ नहीं लगाया जा सकता ।
वैसे भी हर मनुष्य सफलता की चाह लिया जीत ही है, तथा यह उसका अधिकार भी है।
यह तो अपनी ही चंद गलतियां तथा मन के कार्य प्रणाली बाबत अज्ञानता के कारण मनुष्य असफल हो रहा है। मन के बाबत जानकार आप हर सफलता के शिखर छू ले सकते हैं।
अध्याय 15- इंटेलिजेंस
लेखक दीपक त्रिवेदी ने कॉन्शियस, सबकॉन्शिअस तथा अन कॉन्शियस माईंड के बारे मे अभी तक चर्चा की । उन्होने बताया की मनुष्य जीवन में दुःख मिटाना चाहता है। लेकिन हर मनुष्य के सपना होता है कि जीवन मे सफलता पाकर अच्छे तरह से आपणा जीवन व्यतीत कर सके।
मनुष्य की जीवन का समय बहुत कम है इसीलिए उसके पास समय बहुत कम है। लेखक दीप त्रिवेदी कहते हैं कि, मनुष्य को अपने समय व शक्ति का उपयोग अच्छी तरह से करना होगा।
हमारे मन में एक इंटेलिजेंस नाम की वस्तु है जिसका ध्यान सिर्फ समय और शक्ति बचाना है, मगर मनुष्य इंटेलिजेंस का उपयोग बहुत कम करता है।
लेखक कहते कि मनुष्य जीवन में कोई भी सफलता पाने के लिए उसे अपने इंटेलिजेंस को सक्रिय करना जरूरी है और यह इंटेलिजेंस मन के तल पर छूपी हुई होती है। इंटेलिजेंस और ब्रिलियंसी इन दोनों में फर्क है। ब्रिलियंसी बुद्धि का विषय है और इंटेलिजेंस मन का।
मनुष्य को आगे बढ़ाना हो तो उसे ब्रिलीएन और इंटेलिजेंस का फर्क मालूम होना जरूरी है। शार्प मेमोरी या तर्क करने की क्षमता इंटेलिजेंस नहीं है।
जीवन में अनावश्यक चीजों को हटा देने से हमारे पास समय समय और ऊर्जा होगी , तब आप जो भी करेंगे वह आवश्यक वह परिणाम कारक होगा क्योंकि अनावश्यक करना बंद कर ही आप समय ऊर्जा बचा सकते हैं ।
इंटेलिजेंस की तीसरी आंख जगाएं और जीवन में सारे अनावश्यक को भस्म कर दे। जो आवश्यक है उसे बढ़ जाएगा और उससे निश्चित ही आप सफलता के शिकार पर चले जाएंगे।
लेखक इस अध्याय के अंत में कहते हैं कि बुद्धिमान को हर वस्तु आवश्यक जान पड़ती है मगर इंटेलिजेंट के लिए जो हाथों हाथ काम ना आए वह सभी बेकार है।
अध्याय 16- क्रिएटिविटी-(Creativity):-
लेखक दीपक त्रिवेदी इस अध्याय में पावर आफ क्रिएशन के बारे में चर्चा करते हैं।
क्रिएटिविटी एक कला है। प्रकृति काफी क्रिएटिव है,प्रकृति कितने वर्षों से लाखों चेहरे बनाते आ रही है मगर कोई भी चेहरा एक जैसा नहीं होता कोई एक अपवाद छोड़कर।
क्रिएटिविटी की कला मनुष्य में बहुत भारी है और मनुष्य जाति का इतिहास उठाकर देख ले तो जितनी भी नाम इतिहास में दर्ज है उन सभी में एक समानता है और वह है उनकी क्रिएटिविटी।
जो लोग क्रिएटिव है उनको धरती पर एक बड़ी सफलता हाथ लगी है, कुछ उदाहरण के तौर पर एडिसन ,आइंस्टीन, न्यूटन, गैलीलियो। इनके नाम इसलिए इतिहास मे दर्ज है कि उन्होंने कुछ नई खोज की या कोई नया सूत्र दुनिया को दिया।
शेक्सपियर के नाटक महान क्रिएटिविटी का उदाहरण है, चार्ली चैपलिन, रॉयल रोड या माइकल जैक्सन क्यों ना हो, उनकी महानता सब क्रिएटिविटी का एक उदाहरण है।
कॉपी करके क्रिएटिविटी मनुष्य में नहीं आ सकती हमें कुछ अलग क्रिएटिव करके दुनिया को दिखाना होगा।
जो बच्चा खेलकूद में अच्छा है, उसे खेलकूद में कुछ अच्छा क्रिएटिव करने देना होगा। जो बच्चा संगीत मे अच्छा है उसे संगीत में कुछ क्रिएटिव करना देना होगा, जो बच्चा पढ़ाई मे अच्छा है उसे पढ़ाई में कुछ क्रिएटिव कर देना होगा।
प्रकृति में मनुष्य के अलावा किसी को क्रिएटिविटी का पावर नहीं है। लेखक दीप त्रिवेदी कहते हैं कि क्रिएटिव करना है तो कुछ नया सोचना होगा, नए प्रयास करने होंगे।
आपको क्रिएटिव होना है तो एक एक महत्वपूर्ण बात आपको ध्यान रखनी होगी की प्रेरणा सभी से ले परंतु प्रभावित किसी से ना हो । प्रेरणा आपको आगे बढ़ा सकती है । जीवन में सफलता पाने के लिए आपको क्रिएटिव होना ही होगा, कुछ साहस उठाना ही होगा।
लेखक आगे कहते हैं कि आप अपने रुचि के क्षेत्र में भले सफल न हो पाए मगर क्रिएटिविटी से आपको शांति व सुकून जरूर मिलेगा। लेखक दीप त्रिवेदी इस चैप्टर के अंत में रहते हैं कि अपनी क्रिएटिविटी के क्षेत्र में आगे बढ़ना ही आपके जीवन के हित में है।
अध्याय 17 –कॉन्सन्ट्रेशन
लेखक दीप त्रिवेदी कहते है की एक जादू के बारे मे इस अध्याय मे बताते और वो जादू है -”कॉन्सन्ट्रेशन”
किसी एक चीज पर ध्यान लगाना इसे हम कॉन्सन्ट्रेशन कहते है, मगर ऐसा नही है, क्यूकी किसी से कहना की तुम इस चीज पर ध्यान लगाओ और ध्यान लगाके के प्रयास करे और सफल हो जाये तो इससे जादा मूर्खता पूर्ण बात हो नहीं सकती है।
हमे जीवन को परिणामकारक बनाना है तो हम जो कार्य कर रहे उसके अद्भुत परिणाम आने चाहिये और परिणाम आने के लिए कॉन्सन्ट्रेशन की जरुरत होती है।
अभी ये कॉन्सन्ट्रेशन बढाये कैसे जाये?
कॉन्सन्ट्रेशन हर व्यक्ती मे मौजूद रहता है, यह मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। कॉन्सन्ट्रेशनन पैदा किया जा सकता है ना ही बढ़ाया जा सकता है और नाही कही लगाया जा सकता है। कॉन्सन्ट्रेशन के लिए किसी एक वस्तु पर ध्यान न लगाए बल्कि जिस वस्तु पर आप ध्यान लगा रहे है तब इतर सारे जो बुद्धि मे विचार चल रहे है उनमेसे मन को बाहर लाना है।
काम करते व्यक्त सब विचार हमे स्टॉप करने है ऐसा करनेसे कॉन्सन्ट्रेशन की लेवल बढ़ेंगी। कॉन्सन्ट्रेशन बढ़नेसे जीवन मे सफलता बढ़ जाएगी।
चैप्टर-18-महत्वाकांक्षा घटाए (Reduce Ambition):-
जो मनुष्य किसी एक क्षेत्र में मास्टर है उसे हीं अपने जीवन में सफलता हासिल की है।
मन ही मनुष्य की जीवन में रुचि पैदा करता है और मन ही उन रुचि को निकालने की क्षमता रखता है। मन ही मनुष्य का ध्यान उसे रुचि पर पर लगता है।वैज्ञानिक, संगीत, साहित्यिक, कला यह सब मन के कारण है।
यदि पूरा विश्व एक होकर किसी बच्चे को मारपीट कर बच्चो को कुछ बनाना चाहेगा तो भी बच्चा कुछ बन नहीं सकता।सफलता मनुष्य का जन्म सिद्ध अधिकार है लेकिन गड़बड़ मन के कारक उस क्षेत्र में दखलंदाजी करने से हो जाती है।
बच्चों की जिस क्षेत्र उसकी रूचि है उसी क्षेत्र में उसकी प्रज्ञा की झलक मालूम पड़े बस उसी क्षेत्र में उसे प्रोत्साहित करें, एक न एक दिन वह वह उस क्षेत्र में अवश्य सफलता पा लेंगा।
मूड, ध्यान, विश्वास यह सब मन के विषय है, बुद्धि के नहीं है । मूड, ध्यान, विश्वास सिर्फ अपने चुने क्षेत्र में ही लगते हैं। बुद्धि का कोई उपाय मन पर काम नहीं करेगा।
जिस क्षेत्र में मनुष्य की रुचि जागती है उसका कार्य करने में ध्यान लगता है उसको आनंद आता है इस क्षेत्र में उसका मन उसे साथ देता है उसकी प्रज्ञा जागती है,क्योंकि मनुष्य जीवन का पूरा खेल मन के परदे पर ही चलता है।
लोग अपने जीवन में असफल है क्योंकि उनकी महत्वाकांक्षा अधिक है, एक नहीं है।
सफलता कार्य करने से मिलती है और सफलता का अनुपात कार्य की गुणवत्ता पर निर्भय होता है।
यदि आप अपने जीवन में गौर करेंगे तो पाएंगे कि जो आप चाहते हैं वह आपको मिल नहीं रहा तथा जो मिल रहा है वह आप चाहते ही नहीं है।
लेखक दीप त्रिवेदी कहते हैं कि वर्ष 2 वर्ष तक ही स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा एडिसन संसार का सबसे सफल वैज्ञानिक होने की महत्वाकांक्षा कर सकता है? नहीं, जरा उनका जीवन पढ़े वह सफल अपनी दीवानगी की वजह से है।
ऐसे ही स्कूलों में साधारण बच्चे समझे जानेवाले आइंस्टीन क्या विश्व में सबसे ज्यादा बुद्धिमान कहलाने की महत्वाकांक्षा पाल सकते थे? नहीं, यह मानता उनके ध्यान में उन्हें दिलाई है।
पेट्रोल पंप पर काम करने वाले धीरूभाई अंबानी कभी है महत्वाकांक्षा कर सकते थे कि, एक दिन क संसार के बड़े धनवानो में उनका नाम शुमार होगा? नहीं, यह उपलब्धि उन्होंने अपने दूर दृष्टि चारों ओर घट रही परिस्थितियों को बेहतर तरीके से समझने के कारण पाई है।
लेखक दीप त्रिवेदी इस अध्याय के अंत में रहते हैं कि आपको अपने जीवन की महत्वाकांक्षा घटाकर अपना ध्यान अपने कार्यों पर लगाना होगा कार्य पर ध्यान लगाने से आप जीवन में बड़ी सफलता पाएंगे।
अध्याय -19 -संतोष (Satisfaction):-
लेखक दीप त्रिवेदी इस अध्याय में क हते हैं कि जीवन के सारे उपद्रवों को मिटाकर सफलता के शिखर छूने के लिए जीवन मे संतोष रखना इसके सिवाय कोई जादू नहीं है।
“संतोषम परम धनम्”
संतोष का अर्थ क्या है? संतोष का अर्थ है कि आप जहा है जिस हाल में है, तथा आपके पास जो कुछ भी है और जैसा भी है आप उसमें संतुष्ट । आपकी बुद्धि इस परिभाषा का अर्थ ये निकलती है कि यदि संतुष्ट ही हो गए तब तो बढ़ चुके आगे। पर बुद्धि मन के गणित नहीं जानती।
लेखक दीप त्रिवेदी कहते हैं कि आप अपने वर्तमान से पूरी तरह संतुष्ट हो गए तो इसका मन पर क्या असर होगा?, मन शांति और सुकून से भर जाएगा, आनंद और मस्ती जीवन में आ जाएगी। दुःख, चिंता और क्रोध सब गायब हो जाएंगे
मनुष्य अपने बिजी लाइफ में सुकून और शांति का जीवन बिताने हेतु सब प्रयास कर रहा है।
संतोष मानमें पर जैसा कि आपसे कहा कि आप आनंद और मस्ती से तत्क्षण भर जाते हैं और जैसी आप इस निर्मल मनोदशा में पहुंच जाते हैं की फ़ोकट के उपद्रवों के कारण आपकी बुद्धि सही निर्णय लेने लगती है।
सबको बिल गेट बनने की तमन्ना है पर सब निर्णय गलत होते चले गए तो आप बिल गेट नहीं बन सकते, आप सिर्फ कंप्यूटर चलाने लायक बच जाएंगे।
संतोषी व्यक्ति के पास अपने जीने और शौक पूरा करने हेतु टाइम ही टाइम होता है। जबकि बिजी व्यक्ति अपने लिए समय नहीं निकल पाता और जो व्यक्ति अपने लिए समय नहीं निकाल पाता इसका जीना तो व्यर्थ ही हो गया।
संतोष का मजा यह है कि मनुष्य आज से सुखी हो जाता है। दूसरा उसकी मनोदशा हमेशा सकारात्मक बनी रहती है।जीवन में लिए श्रेष्ठ निर्णाय ही मनुष्य गती व मती दोनों को निश्चित करते हैं।
पल भर में जीवन से सारे कष्टों को दूर करनेवाले तथा सफलता के शिखर को चूमने में सक्षम ऐसे “संतोष” नामक परम गुण को अपनाकर आप अपना मनुष्य जीवन आज से ही सफल बनाने में लग जाएंगे।
अध्याय-20- सार (Summary):_
लेखक दीप त्रिवेदी इस किताब के आखिरी अध्याय में कहते हैं कि मनुष्य जीवन के दो ही उद्देश्य है, आनंद से जीना और सफलता के शिखर छुना।
उद्देश्य साफ होते हुए भी लाखों में से दो-चार लोग ही सफल व सुखी हो पाते हैं।अधिकांश लोग ना सिर्फ अपने वर्तमान जीवन से असंतुष्ट है, बल्कि अपनी भविष्य की प्रति शंकित भी होते हैं। वह अपनी जीवन को सफल बनाने हेतु परिवार से लेकर समाज तक तथा मित्रों से लेकर सरकार तक सबके आश्रय ले ही चुके होते हैं।
बुद्धिमान मनुष्य हजार वर्षों से लगातार नाकाम हो रहे हैं आसरो के भरोसे ही अपना जीवन बनाने में लगे हुए हैं। चूक यह भी हो रही है कि वह जानता ही नहीं कि मनुष्य जीवन को एक नहीं अनेक अनेक फोर्स प्रभावित कर रहे हैं ।
जीवन को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाला मन है फिर भी मनुष्य मन की बाबत बहुत कम जानते हैं।
मन पूर्ण रूप से स्वतंत्र है और मन की कार्य प्रणाली बड़ी कॉम्प्लिकेटेड है। यहां ध्यान रखने लायक खास बात यह की इन सब के बावजूद मन पूरी तरह नियम से चलता है अर्थात मन को समझा जा सके ऐसी विशेषता यहां की एक ओर से अनेक शक्तियों का मन केंद्र है।
दूसरी ओर मन अपने में कई विकार भी छिपाये हुवे है, मन के विकारों को समझे बगैर तथा उनसे निपटे बगैर मनुष्य सुखी नहीं हो सकता है।
मन की शक्तियों का उपयोग किए बगैर मनुष्य सफलता के शिखर नहीं छू सकता है।उत्साह, आत्मविश्वास और ढृढ़ता मन के स्वरूप के शुभ गुण है ,इस गुण को हमें पहचाना है।
लेखक दीप त्रिवेदी यहां एक छोटे बच्चों का उदाहरण देते हैं कि चाहे कोई खिलौना टूट जाए या कोई चोट लग जाए दो-चार मिनट तक रोने वाला लड़का फिर नई चीज ढूंढता है और उसके ऊपर ध्यान लगाकर खेलता है।
विज्ञान कहता है कि बच्चों के दिमाग का करीब करीब 80% विकास उसके चार-पांच वर्ष की उम्र तक हो जाता है। विज्ञान की बात सही है और नहीं भी, क्योंकि विज्ञान मन की अदृश्य शक्तियों से और मन उपस्थिति से पूरी तरह अनजान है।
मनुष्य को मन और बुद्धि का फर्क नहीं समझता तब तक मनुष्य जीवन में सुखी नहीं हो सकता इस किताब में लेखक ने मन और बुद्धि का फर्क पूरी तरह से समझाया है।
लेखक इस किताब के अंत में कहते हैं कि मनुष्य का जीवन सही मायने में देखा जाए तो मन के इर्द गिर्द घूमता है।
अध्याय-19 आत्मविश्वास (Self-confidence):-
लेखक दीप त्रिवेदी इस अध्याय में कहते है की आत्मविश्वास सफलता की कुंजी है।
आत्मविश्वास से कोई बात नहीं बनती। मन के अन्य गुणों की तरह आत्मविश्वास मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। आत्मविश्वास को पाया या बढ़ाया नहीं जा सकता।
परिणाम स्वयं कोशिश करने से आते हैं। कुछ नया करते वक्त जो सफलता पाना चाहते है वही तो सिर्फ अपनी प्रतिभा पर भरोसा करता है वही जीवन में सफल हो सकता है । दूसरों पर किया हर विश्वास यैन वक्त पर चूर-चूर हो जाता है।
दूसरों के भरोसे जीने से फिर चाहे वह भगवान ही क्यों ना हो मनुष्य का विश्वास घटता है।मनुष्य की अपनी काबिलियत और नियत पर पूर्ण विश्वास ही आत्मविश्वास है। दूसरा कोई आत्मविश्वास संसार में होता भी नहीं।
यदि आपको अपनी काबिलियत पर विश्वास नहीं होगा तो कोई भी कार्य आप कभी भी विश्वासपूर्वक नहीं कर पाएंगे।यदि आपको अपनी नियत पर विश्वास नहीं होगा तो हर कार्य करने से पहले हजारों विचार करेंगे, कि यह पाप तो नहीं, यह बुरा तो नहीं या ये पुण्य तो नहीं। कार्य हेतु पूरी तरह शास्त्र और समाज पर निर्भर रहेंगे
जीवन सफल कार्य से बनता है और कार्य बिना विश्वास के नहीं किया जा सकता है।
लेखक दीप त्रिवेदी कहते हैं कि यदि आप में विश्वास ही नहीं कि आप तैरना सीख सकते हैं, तो हजार प्रयासों के बाद भी हो सकता है कि आप तैरना न सीख पाए।
विश्वास की जड़ी बूटी आपका समय तथा ऊर्जा दोनों बचा लेती है। अनुभव के बाद तो विश्वास जगाता है परंतु अनुभव प्राप्त करने में बहुत समय जाता है और उतना समय आपके पास नहीं है।
आपका क्षेत्र वही है जिसमें आपकी प्रतिभा है। जिस क्षेत्र में आपकी प्रतिभा होगी उसे कार्य में आपका विश्वास स्वतः ही जाग जाएगा। यह सबसे बड़ी बात यह की विश्वास कोई ऐसी वस्तु नहीं जो बाजार से उधार से मिल जाए।
वास्तविक विश्वास है वह सिर्फ स्वयं की आत्मा पर ही किया जा सकता है और स्वयं पर विश्वास भी अपनी प्रतिभा व गुणों के आधार पर ही किया जा सकता है।
अप्प दीपो भव” यानी अपने दिए स्वयं बनो।
मनुष्य सिर्फ अपनी प्रतिमा तथा अपने गुणों पर ही विश्वास पैदा कर सकता है।आपका विश्वास ही वह मार्ग है जो आपको अपनी मंजिल तक पहुंचा सकता है।
मन के कॉम्प्लिकेशन तथा मन की शक्तियां, दोनों का विस्तार बहुत बड़ा है।
मन का दायरा सुपर कॉन्शियस माइंड की स्थिति प्राप्त करके रखना है यह कुल शक्तियों का 10% भी नहीं है। मन ऐसी अद्भुत शक्तियों से भरा पड़ा है कि जिसे पहचान करना अपने जीवन में जादुई सफलता ला सकते हैं।
लेखक दीप त्रिवेदी इस किताब में मन के प्रकार, मन की कार्य प्रणाली बाबत और जिनव मे सुखी होने के लिए हमे क्या करना चाहिए इसके बारे मे बताते है। किताब मे बताई गई स्टोरीज किताब को और आसान बना देती है और वो कान्सेप्ट पढ़ानेवालों को असनिसे समज या जाती है। यह आकर्षक किताब आप online खरीदकर पढ़ सकते है
यह बुक समरी आपको कैसे लगी कमेंट करके जरूर बताना।
आपका दोस्त बोलदोस्त
(Main Mann hoon Hindi Book Summary)
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