दोस्तों स्वागत है आपका Boldost .com पर। इस आर्टिकल में हम एक कहानी पढ़ेंगे जो हमे किस व्यक्ति को सच्चे दिल से मदद करनी चाहिए या उपकार करना चाहिए इसकी सिख देंगी।
उपकार की बोधकथा : हिंदी कहानी
एक बार एक बाघ और एक बाघिन अपने शावकों को एक गुफा में छोड़कर शिकार करने के लिए दूर जंगल में चले गए। दो दिन बित गए मगर बाघ और एक बाघिन वापस नहीं आये । यहां शावकों को बहुत भूख लगती है और वो हंगामा करने लगते है। हंगामा सुनकर एक बकरी को उन पर दया आ जाती है। उसने अपना दूध बाघिन के शावकों को पिलाया। शावकों की जान में आई जान आ गई।
अब बकरी रोज आकर उन्हें दूध पिलाने लगी। एक दिन शावक मस्ती करने लगे। तभी वहां बाघ और बाघिन लौट आए। वह अपने शावकों के साथ बकरी को देखकर अपनेआप शिकार पाकर खुश हो गए और बाघ उस पर झपटने ही वाला था कि बाघ के शावक ने कहा, “माँ और पिताजी, इस बकरी ने हमें दूध पिलाकर पाला है।” अगर ये न होती तो हम मर जाते। वह हमारी बहुत आभारी हैं। तुम उसे मत मारो।”
बाघ शावकों की बात सुनकर प्रसन्न हुआ और उससे कहा, हम तुम्हारा यह उपकार कभी नहीं भूलेंगे। अब आप स्वतंत्र रूप से जंगल में अकेले खुशी से घूम सकती हो । आपको जंगल में कोई परेशान नहीं करेगा। मैं इसकी गवाही देता हूं। तब से बकरी बड़े साहस के साथ जंगल में खुलेआम गुमने लगी।
एक बार एक गरुड़ ने बकरी को बाघ की पीठ पर बैठकर एक ऊँचे पेड़ की पत्तियाँ खाते हुए देखा और जिज्ञासावश बकरी से इस कीमिया के बारे में पूछा। बकरी ने उसे सारी सच्चाई बता दी। गरुड़ को कृतज्ञता के महत्व का एहसास हुआ। उस गरुड़ ने मन ही मन निश्चय किया कि मुझे भी ऐसा ही महान कार्य करना चाहिए।
एक बार गरुड़ उड़ रहा था तब उसने चूहे के कुछ बच्चों को एक दलदल में फँसा हुआ देखा। वह बाहर निकलने की कोशिश में और गहरी होती जा रही थी। अंत में गरुड़ने उन्हें अलग-अलग निकाल लिया।
चूहे के बच्चे गीले थे और ठंड से छटपटा रहे थे। गरुड़ ने उन्हें बहुत देर तक अपने पंखों में बिठाया। थोड़ी देर बाद, गरुड़ ने चूहे के चूजों को विदा किया और अपने घोंसले में जाने के लिए उड़ान भरने की कोशिश की, लेकिन गरुड़ उड़ नहीं पाया । वह व्याकुल हो गया और कारण जानने लगा।
जब चूहे के बच्चे को ठंड लग रही थी तो उन गरुड़ के पंख में ऊब लगी तब गरुड़ के पूरे पंख उन्होने कुतर लिए । किसी तरह गरुड़ बकरी के पास पहुंचा और बकरी से इसके बारे में पूछा।
“उपकार तुमने भी किया और मैंने भी उपकार किया। लेकिन दोनों का फल अलग कैसे हुआ?”
बकरी हँसी और गंभीरता से बोली,
उपकार हमेशा बाघ जैसे दिलदार को देना चाहिए, चूहे जैसे स्वार्थी को नहीं। क्योंकि स्वार्थी लोग हमेशा अपने स्वार्थ के लिए दूसरे विकल्प की तलाश में रहते हैं। एक सच्चे और ईमानदार व्यक्ति को भी भूल जाते हैं। लेकिन हार्दिक स्वभाव वाले लोग निस्वार्थ होते हैं और एक बहादुर व्यक्ति जीवन भर उपकार करने वाले को याद करता है।