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Home हिंदी कहानियां

हिंदी कहानी:कंकड़ और घी (भगवान गौतम बुद्ध विपश्यना स्टोरी )

bol dost by bol dost
February 9, 2024
in हिंदी कहानियां
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हिंदी कहानी:कंकड़ और घी

हिंदी कहानी:कंकड़ और घी

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 दोस्तों स्वागत है आपका Boldost.com पर। इस आर्टिकल में हम एक हिंदी कहानी:कंकड़ और घी  कहानी पढ़ेंगे जो हमे अपने कर्म के रहस्य के बारे में जानकारी देंगी:-कंकड़ और घी (भगवान गौतम बुद्ध विपश्यना स्टोरी ) 

हिंदी कहानी:कंकड़ और घी

मनुष्य के कर्म किस तरह होने चाहिए और उसे स्वर्ग में गती कैसे मिलती है यह हमे कहानी पढनेके बाद समजमें आएगा।

चलो तो फिर दोस्तों बढ़ते है कहानी की तरफ।

एक दिन एक युवक भगवान बुद्ध के पास रोता हुआ आता है।
युवक को रोता हुवे देख भगवान बुद्ध ने उससे पूछा, ‘नौजवान, क्या हुआ? क्यों रो रहे हो “

‘भगवान, मेरे बूढ़े पिता कल मर गए”
“वास्तव में रोने के सिवाय मैं फिर क्या कर सकता हूँ? लेकिन भगवान, मैं आपसे एक विशेष अनुरोध करने आया हूं। कृपया मेरे मृत पिता के लिए कुछ अच्छा करें” युवक ने रोते हुवे कहा। 

“ओह! मैं तुम्हारे मृत पिता के लिए क्या कर सकता हूं?

‘भगवान , ना मत कहो। कृपया कुछ करो। आप इतने शक्तिशाली हैं, आप निश्चित रूप से ऐसा कर सकते हैं। ये छोटे-बड़े धार्मिक समूह, पुजारी, पंडित आदि मृत व्यक्ति की मुक्ति के लिए अनेक कर्मकांड करते हैं। और सभी रस्में पूरी होने के बाद, मृतक के लिए स्वर्ग का द्वार खोल दिया जाता है।

 

उसे स्वर्ग में प्रवेश करने की अनुमति मिल जाती है। भगवान, आप महान हैं, शक्तिशाली हैं। यदि आप मेरे मृत पिता के लिए कुछ कर्मकांड करते हैं, तो उन्हें न केवल प्रवेश की अनुमति मिल सकती है, बल्कि स्वर्ग में स्थायी निवास की अनुमति भी मिल सकती है, आपको कुछ करना चाहिए”। 

बेचारा युवक इतना भावुक था कि उसे कोई दार्शनिक चर्चा या तर्कसंगत व्याख्या समझ में नहीं आ रही थी। सत्य को समझने के लिए भगवान बुद्ध को दूसरी विधि अपनानी पड़ी,

तो उन्होंने उससे कहा, “ठीक है, बाजार जाओ और दो मटकी ले आओ”

भगवान बुद्ध अपने मृत पिता के लिए कुछ कर्मकांड करने के लिए तैयार हो गए है ये देख उस युवक को अच्छा लगा और वो भागते हुवे बाजार गया और वहासे दो मटकी ले आया। 

भगवान बुद्ध में उसे कहा,” बहुत अच्छा ! अब एक करो की एक मटका घी से भरो और दूसरा कंकड़ से”
युवक ने वो भी कामगिरी अच्छी तरह से पूरी की को
“अब उन मटकियों का मुँह अच्छी तरह से बांध लो “
युवक ने वैसा किया

“अब यो दोनों मटकी को तालाब में ले जाओ”

युवक ने घी और कंकड़ की मटकी पानी में डाली तो दोनों मटकी डूब गई

भगवान बुद्ध ने कहा, ‘अब एक बड़ा डंडे लाओ और इन बर्तनों को मारो और उन्हें तोड़ दो।’

भगवान बुद्ध द्वारा अपने दिवंगत पिता के लिए किए गए इस अद्भुत कर्मकांड को देखकर वह युवक बहुत प्रसन्न हुआ।

हमारी पुरानी परंपरा के अनुसार, किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका बेटा उसके शव को शमशान ले जाकर शव को चिता पर रखकर जला देता है । शरीर के आंशिक रूप से जल जाने के बाद उसके सिर को किसी मजबूत डंडे से कुचल दिया जाता है ।

यहां जब उनकी खोपड़ी फटी तो माना गया कि उसी समय उनके लिए स्वर्ग का द्वार खुल गया ।

युवक ने सोचा कि कल मेरे पिता को अग्नि दी गई थी और भगवान बुद्ध ने आज उपमा के रूप में उनसे इस घड़े को फोड़ने को कह रहे है । वह युवक रस्म से बहुत संतुष्ट हुवा ।

हिंदी कहानी:कंकड़ और घी

जैसा कि भगवन बुद्ध ने उसे बताया, युवक ने एक बड़ा डंडा लिया और जोर से मटकी को गुस्से से मारा, दोनों मटकी को तोड़ दिया। उसी समय एक मटकी में रखा सारा घी पानी से ऊपर आ गया और पानी पर फैल गया और तैरने लगा।

लेकिन दूसरी मटकी में कंकड़ थे वो पानी में सबसे नीचे चले गए।

तब भगवान बुद्ध ने कहा, “अच्छा! तुम्हारे लिए इतना कुछ किया युवक”
अब अपने तांत्रिकों, जादूगरों और पुजारियों को बुलाओ और उनको प्रार्थना करने या मंत्रोच्चारण करने के लिए कहो, ‘आओ, तुम कंकड़! ऊपर आओ…….. ऊपर आओ,….. और घी,घी नीचे जाओ,….. नीचे जाओ”।

ये सब सुनते युवक ने कहा, “भगवन ये कैसे हो सकता है “,भगवान ! तुम मेरा उपहास तो नहीं कर रहे” ।

“यह कैसे संभव है कि प्रार्थना करने के बाद घी निचे चला जाए और कंकड़ ऊपर आ जाए!

कंकड़ पानी से भारी होते हैं, इसलिए वे ऊपर नहीं उठ सकते। कंकड़ निचे ही रहेंगे । वे ऊपर नहीं आ पाएंगे। यह प्रकृति का नियम है। इसी तरह घी पानी से हल्का होता है और पानी पर तैरने लगता है। यह पानी के तल पर नहीं रह पाएगा।

तब भगवान बुद्ध कहते है “युवा सज्जन आप प्रकृति के नियमों के बारे में बहुत कुछ जानते हो । लेकिन आप मानव प्रकृति के नियमों को कैसे नहीं समझ सकते हैं?

यदि आपके पिता के कर्म सभी जीवन में इन कंकड़ों की तरह भारी हैं, तो वे केवल उन्हें नीचे ले जाएंगे,उन्हें कौन उठा सकते हैं? और यदि उनके कर्म इस घी के समान है तो वो स्वर्ग में ही जाएंगे।

आपके पिता ने जिस तरह के कर्म किये है उनको उन कर्मो को तरह जीवन में गती मिलेंगी। यह मंत्र उच्चारण ,पूजा ,कर्मकांड कुछ नहीं कर सकते है।
यह प्रकृति का नियम है वो सबके लिए लागु होता है।

 

सारांश
मनुष्य का दुःख अपने बारे में सत्य की सही जानकारी न होने पैदा होता है।
समता भाव का विकास करके हम दुखो से मुक्त हो सकते है।
कर्म अच्छे तो मरने के बाद गती अच्छी ,कर्म बुरे तो मरने के बाद गती बुरी ,मन के विकार दूर करो।
अज्ञान के पिछले कर्मो के कारण जीवन फिर से शुरू होता है एक नए परिवर्तन के लिए।
दोस्तों आपको यह कहानी कैसी लगी कमेंट करके जरुरु बताना।
धन्यवाद ।

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